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उफनती नदी में वाहन फँसे तो दर्दनाक मौत: लाडली बहना ही बनी सरकार की संवेदनहीनता की मिसाल

✍️ Written & Edited by : ADIL AZIZ

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रीवा जिले के जवा तहसील, भनिगवां गाँव  बरहठा टोला में घटित एक मौत ने प्रदेश सरकार की तमाम योजनाओं और खर्च की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारी बारिश के कारण महाना नदी उफान पर थी और सड़कें जलमग्न थीं। एक गर्भवती महिला प्रसव पीड़ा से तड़प-तड़प कर अपनी जान गंवाती है, क्योंकि वाहन दो घंटे तक नदी के बीच में फंसा रहता है—और अस्पताल तक पहुँचने में असमर्थ असमर्थता ही मौत की वजह बन जाती है।

दर्दनाक घटना का विवरण

भोपाल से लगभग 500 किमी दूर भनिगवां गाँव  बरहठा टोला  इलाके में, बरसात की अचानक बाढ़ ने छोटे ग्रामीण रास्तों को तबाह कर दिया था। परिजनों के साथ वाहन महाना नदी में फँसा—दो घंटे तक हर वह प्रयास विफल रहा जिससे महिला सुरक्षित अस्पताल पहुँचती। अन्त में, प्रसव पीड़ा से तड़पते हुए महिला की मृत्यु हो गई। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि बुनियादी ढांचे की कमी और सरकारी प्राथमिकताओं की संवेदनहीनता का एक रोना है।



सरकार की प्राथमिकताएँ: जिन्हें खर्च करना है—करोड़ों; जहां जरूरत है—शून्य

मध्य प्रदेश में कैबिनेट की बैठकें भोपाल के बजाय दूसरी शहरों (जैसे इंदौर, जबलपुर, उज्जैन) में आयोजित करने पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। ये खर्च भव्य आयोजन, आतिथ्य, यात्रा, मीडिया कवरेज में चले जाते हैं। लेकिन जंगली गांवों में सड़क निर्माण या नदी पार सुविधाओं में फंड नहीं है। जहाँ सच में खर्च की आवश्यकता है, वहाँ सरकार के पास “प्रक्रिया” या “बजट सीमा” का बहाना है।

PWD मंत्री राकेश सिंह ने स्वयं कहा:

“क्या आप सोचते हैं कि कोई भी विभाग सोशल मीडिया पोस्ट पर सिमेंट‑कंक्रीट डंपर लेकर सड़क बनाने पहुँच जाए? ऐसा नहीं हो सकता; एक प्रक्रिया होती है।” (, आज तक)

यह बयान न सिर्फ योजनाओं का फंडिंग नहीं, बल्कि उनकी वास्तविक जरूरतों से दूरी को उजागर करता है।

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राकेश सिंह के विवादित बयान: जब तक सड़कें रहेंगी, तब तक गड्ढे होते रहेंगे

PWD मंत्री राकेश सिंह ने 9–10 जुलाई 2025 को मीडिया से कहा:

“जब तक सड़कें रहेंगी, तब तक गड्ढे होते रहेंगे। मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कोई भी सड़क ऐसी है जिस पर गड्ढे न हों… ऐसी कोई तकनीक PWD के संज्ञान में नहीं आई है।” (आज तक)

इस तर्क को ऑनलाइन सोशल मीडिया और कांग्रेस ने तीखी आलोचना की है। कई लोगों ने इसे सरकार की बेपरवाही और जनता की पीड़ा में दूरी का प्रतीक माना।

हालांकि, मंत्री ने यह भी बताया कि यदि चार‑पांच साल टिकने वाली सड़क छह महीने में ही गड्ढेदार हो जाए तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। इसके साथ-साथ उन्होंने एक गुणवत्ता सुधार योजना का भी उल्लेख किया:

डामर सिर्फ भारत पेट्रोलियम या हिंदुस्तान पेट्रोलियम से खरीदा जाएगा, उस पर डिजिटल लॉक लगेगा और सब‑इंजीनीयर के मोबाइल पर ओटीपी आएगा—जिसके बाद ही सामग्री अनलोड हो सकती है, जिससे क्वालिटी नियंत्रण में मदद मिलेगी। (आज तक)

लेकिन सवाल यही है—क्या ये प्रक्रियाएं इतनी महत्वपूर्ण थीं कि लाडली बहनों के बैंक खातों में भुगतान कट जाए, या ग्रामीण सड़क निर्माण में विलंब हो?


लाडली बहना योजना: लाभ कटौती और संवेदना की कमी

मध्य प्रदेश सरकार की प्रमुख योजनाओं में से एक लाडली बहना योजना है, जिसके तहत हर माह पात्र महिलाओं के खाते में ₹1,250 भेजा जाता है। कई महीनों में यह राशि ₹1,500 भी भेजी गई (रक्षाबंधन‑शगुन सहित)। (https://mpcg.ndtv.in/)

लेकिन आलोचना यह है कि सरकार करोड़ों खर्च करने में अहर्निश रहती है, जबकि:

  • 1.6 लाख लाडली बहनों के नाम “ineligible” घोषित कर लाभ रोका गया।

  • नाम गलती से मृत घोषित होने पर भी कटौती कर दी गई — एक महिला छह महीने तक मृत घोषित रहीं और लाभ बंद रहे। बाद में नाम सुधारा गया, लेकिन भुगतान नहीं मिला। (freepressjournal.in)

इससे साफ संकेत मिलता है कि योजनाओं की रसद सही नहीं है, लेकिन बड़े आयोजनों की भव्यता पर खर्च में कभी कमी नहीं बचती।


संवेदनशीलता कहाँ है?

  • सड़क निर्माण और बुनियादी संरचना की कमी जाएगी तो गाँवों में जीवन–मृत्यु का अंतर बन जाती है।

  • लाडली बहना योजना की कटौतियाँ—जो गरीब महिलाओं को आर्थिक सहारा देना चाहती है—उसमें भी प्रशासनिक त्रुटियां और देरी खुलेआम देखने को मिलती हैं।

  • कैबिनेट बैठकों और आयोजन स्थलों पर करोड़ों खर्च करने की तुलना में गांवों में सड़क बनाने की प्रक्रिया को “बजट अभाव” बताया जाना—क्या यह जनता के प्रति संवेदना नहीं है?


निष्कर्ष एवं संदेश

  1. जिन क्षेत्रों में नागरिक सच में जोखिम और कठिनाई झेलते हैं (जैसे भ्रूण‑काल की गर्भवती महिलाओं के लिए सड़क सुविधा, लाडली बहनाओं को समय पर भुगतान) वहाँ सिस्टम में सुधार, प्राथमिकता और बजट आवंटन अविलंब होना चाहिए।

  2. बड़े‑बड़े कार्यक्रमों पर खर्च करना सही है, लेकिन यह नहीं होना चाहिए कि उससे जनता की वास्तविक ज़रूरतें अनदेखी हों।

  3. राकेश सिंह के बयान—“गड्ढे रहेंगे”—वास्तव में शासन‑प्रणाली की वह मानसिकता दिखाता है, जहाँ तकनीकी समस्याओं को सामान्यकरण करके जनता की पीड़ा को मामूली बना दिया जाता है।

लाडली बहना योजना पर कटौती और बुनियादी ढांचे की उपेक्षा एक दूसरे से जुड़े प्रणालीगत निशान हैं। कृपया सरकार से यह उम्मीद करना बनता है:

जब योजनाएँ जनता के लिए होती हैं, तो उनकी संवेदनशीलता भी जनता की तरह होनी चाहिए।


✍️ Written & Edited by : ADIL AZIZ

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