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गोविंदा का बॉलीवुड करियर किसने खत्म किया?


गोविंदा: एक चमकता सितारा जो धीरे-धीरे फीका पड़ गया



बॉलीवुड में जब भी 90 के दशक की बात होती है, तो गोविंदा का नाम जरूर लिया जाता है। अपने जबरदस्त डांस, कॉमिक टाइमिंग और एनर्जी से उन्होंने उस दौर के दर्शकों के दिलों पर राज किया। लेकिन समय के साथ उनका करियर ग्राफ गिरता चला गया और धीरे-धीरे वे फिल्म इंडस्ट्री से लगभग गायब हो गए। सवाल उठता है – आखिर किसने गोविंदा का करियर खत्म किया?

करियर की बुलंदी और गिरावट

गोविंदा ने 80 और 90 के दशक में कई सुपरहिट फिल्में दीं। उनकी "कुली नंबर 1", "राजा बाबू", "हीरो नंबर 1" जैसी फिल्में दर्शकों को बेहद पसंद आईं। डेविड धवन के साथ उनकी जोड़ी बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाती थी। लेकिन 2000 के बाद उनका करियर ढलान पर जाने लगा।

गोविंदा का करियर खत्म होने के पीछे कई कारण रहे –

1. बदलते समय के साथ खुद को नहीं ढाल पाना

90 के दशक की मसाला फिल्में 2000 के बाद धीरे-धीरे कम होने लगीं। दर्शकों का टेस्ट बदला और रियलिस्टिक सिनेमा का दौर शुरू हुआ। गोविंदा की फिल्में पुराने फॉर्मूले पर चल रही थीं, जो अब दर्शकों को ज्यादा पसंद नहीं आ रही थीं।

2. बॉलीवुड में नेपोटिज्म और पॉलिटिक्स

कई बार गोविंदा ने खुद यह आरोप लगाया कि बॉलीवुड में नेपोटिज्म और ग्रुपिज्म के कारण उन्हें साइडलाइन किया गया। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके अपने लोग ही उन्हें धोखा दे गए। यहां तक कि उन्होंने करण जौहर और सलमान खान जैसे बड़े नामों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधा था।

3. डेविड धवन से अलगाव

डेविड धवन और गोविंदा की जोड़ी ने बॉलीवुड को कई हिट फिल्में दीं, लेकिन जब डेविड धवन ने वरुण धवन के करियर पर फोकस करना शुरू किया, तो गोविंदा उनसे नाराज हो गए। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि डेविड धवन ने उन्हें धोखा दिया। इसके बाद डेविड धवन ने भी गोविंदा को अपनी फिल्मों में कास्ट करना बंद कर दिया।

4. सलमान खान का उदय

2000 के दशक में सलमान खान ने कॉमेडी और मसाला फिल्मों में जबरदस्त पकड़ बना ली। गोविंदा की जगह सलमान खान ने ले ली और "वांटेड", "दबंग" जैसी फिल्मों से अपनी पोजीशन मजबूत कर ली। गोविंदा को जो फिल्में पहले ऑफर होती थीं, वे अब सलमान या अक्षय कुमार को मिलने लगीं।

5. पॉलिटिक्स में एंट्री

गोविंदा ने 2004 में राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी से सांसद बने। लेकिन राजनीति में उनकी परफॉर्मेंस उतनी दमदार नहीं रही। राजनीति और फिल्मी करियर दोनों को बैलेंस करने में वे असफल रहे। जब वे दोबारा फिल्मों में लौटे, तब तक इंडस्ट्री में नए सितारे छा चुके थे।

6. करियर को दोबारा संवारने में देरी

2007 में "पार्टनर" फिल्म में गोविंदा ने सलमान खान के साथ वापसी की और फिल्म हिट रही। लेकिन इसके बाद वे फिर से गायब हो गए। उन्होंने सही स्क्रिप्ट्स नहीं चुनीं और उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चलीं। "किल दिल", "रंगीला राजा" जैसी फिल्में बुरी तरह फ्लॉप रहीं।

7. बॉलीवुड ग्रुप्स से दूरी

बॉलीवुड में कुछ खास ग्रुप्स का दबदबा रहता है। गोविंदा कभी भी करण जौहर, यशराज फिल्म्स, संजय लीला भंसाली जैसे बड़े फिल्ममेकर्स के करीब नहीं रहे। इसके चलते उन्हें अच्छी स्क्रिप्ट्स नहीं मिलीं और धीरे-धीरे वे इंडस्ट्री से बाहर हो गए।

क्या गोविंदा की वापसी संभव है?

बॉलीवुड में कई अभिनेता लंबे समय बाद भी वापसी कर चुके हैं। गोविंदा के पास टैलेंट की कोई कमी नहीं है, लेकिन उन्हें सही फिल्म और निर्देशक की जरूरत है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने कई पुराने सितारों को दोबारा मौका दिया है, अगर गोविंदा अच्छी स्क्रिप्ट चुनें, तो वे फिर से अपना जलवा बिखेर सकते हैं।

गोविंदा के करियर के खत्म होने की एक बड़ी वजह इंडस्ट्री की राजनीति, बदलता सिनेमा और उनकी खुद की गलतियां भी रहीं। डेविड धवन से अलगाव, सलमान खान का उदय, और सही समय पर वापसी न कर पाना उनके करियर के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। लेकिन उनके फैंस अब भी उनकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं।


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गोविंदा का बॉलीवुड करियर: उत्थान, पतन और उसके पीछे की कहानियाँ

परिचय

बॉलीवुड के चमकते सितारों में से एक, गोविंदा ने 80 और 90 के दशक में अपनी अद्वितीय अभिनय शैली, नृत्य कौशल और कॉमिक टाइमिंग से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। लेकिन समय के साथ, उनका करियर ढलान पर आ गया। यह आलेख गोविंदा के करियर के उत्थान, पतन और उन कारणों की विस्तृत चर्चा करेगा जिन्होंने उनके करियर को प्रभावित किया।

करियर का स्वर्णिम दौर

गोविंदा ने 1986 में फिल्म "इल्ज़ाम" से बॉलीवुड में कदम रखा और जल्द ही "राजा बाबू", "कुली नंबर 1", "हीरो नंबर 1" और "आंखें" जैसी सुपरहिट फिल्मों के साथ सफलता की ऊंचाइयों को छू लिया। उनकी जोड़ी करिश्मा कपूर के साथ विशेष रूप से लोकप्रिय रही, और उनकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया।

करियर में गिरावट के संकेत

हालांकि, 2000 के दशक की शुरुआत में, गोविंदा के करियर में गिरावट के संकेत दिखाई देने लगे। इसके पीछे कई कारण थे:

1. अत्यधिक फिल्में साइन करना

गोविंदा ने एक समय में लगभग 70 फिल्में साइन की थीं, जिनमें से कई बी-ग्रेड और सी-ग्रेड की थीं। इससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा और दर्शकों में उनकी फिल्मों की गुणवत्ता को लेकर नकारात्मक धारणा बनी। पहलाज निहलानी के अनुसार, गोविंदा ने बिना सोचे-समझे कई फिल्में साइन कीं, जिससे उनके करियर पर विपरीत प्रभाव पड़ा।

2. अंधविश्वास और पेशेवर व्यवहार

समय के साथ, गोविंदा अंधविश्वासी हो गए थे। सेट पर झूमर गिरने जैसी घटनाओं को लेकर वे चिंतित रहते थे और अपने सहकर्मियों को कपड़े बदलने जैसी बातें कहते थे। इसके अलावा, वे समय की पाबंदी नहीं रखते थे और सेट पर देर से पहुंचते थे, जिससे निर्माता-निर्देशकों के साथ उनके संबंध प्रभावित हुए।

3. राजनीति में प्रवेश

2004 में, गोविंदा ने राजनीति में कदम रखा और लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। हालांकि, राजनीति में सक्रिय न रह पाने के कारण, उन्होंने यह क्षेत्र छोड़ दिया। इस दौरान, वे फिल्मों से दूर हो गए, जिससे उनकी फिल्मी करियर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

नतीजा

इन सभी कारणों के संयोजन ने गोविंदा के करियर को प्रभावित किया। अत्यधिक फिल्में साइन करना, अंधविश्वास, पेशेवर अनुशासन की कमी और राजनीति में प्रवेश ने उनके करियर में गिरावट लाई। हालांकि, उनकी प्रतिभा और योगदान को नकारा नहीं जा सकता, और वे हमेशा बॉलीवुड के चमकते सितारे रहेंगे।

गोविंदा  का करियर एक सीख है कि सफलता के साथ-साथ पेशेवर अनुशासन, सही निर्णय और समय की पाबंदी कितनी महत्वपूर्ण है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रतिभा के साथ-साथ सही दिशा और निर्णय भी आवश्यक हैं ताकि करियर की लंबी उम्र बनी रहे।


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