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मोदी बीजेपी के प्रचारक या राम रहीम सिंह की पैरोल: क्या बलात्कारियों के भरोसे चुनाव जीतना चाहती है भाजपा?

written by :*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता* _स्वतंत्र पत्रकार_



देशभर में इस समय एक चर्चा ने तूल पकड़ लिया है, और वह है भाजपा सरकार द्वारा राम रहीम सिंह को बार-बार पैरोल पर रिहा किए जाने का मामला। राम रहीम सिंह, जो बलात्कार और हत्या जैसे संगीन अपराधों में दोषी ठहराया जा चुका है, उसे चुनाव के समय पर पैरोल देकर जेल से बाहर लाया जाता रहा है। चाहे वह विधानसभा चुनाव हों, निकाय चुनाव हों, या फिर आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी हो, राम रहीम को पैरोल पर रिहा करना एक पैटर्न बन चुका है। यह कदम न केवल जनता के विश्वास को तोड़ने वाला है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या भाजपा अब अपनी चुनावी नैया पार करने के लिए अपराधियों के भरोसे चल रही है?


राम रहीम सिंह को बार-बार पैरोल: क्या है भाजपा की रणनीति?

राम रहीम सिंह को पहली बार फरवरी 2021 में पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले पैरोल दी गई थी। इसके बाद से हर चुनाव के दौरान उन्हें पैरोल पर बाहर लाया जाता रहा है। जून 2022 में हरियाणा निकाय चुनाव, अक्टूबर 2022 में आदमपुर उपचुनाव, और 2023 में राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान भी राम रहीम को पैरोल पर रिहा किया गया। इतना ही नहीं, 2024 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जनवरी में उन्हें 50 दिनों की पैरोल दी गई थी।

हाल ही में, अक्टूबर 2024 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के समय राम रहीम सिंह को फिर से 21 दिन की पैरोल दी गई, जो दर्शाता है कि भाजपा अपनी चुनावी सफलता के लिए इस व्यक्ति पर किस हद तक निर्भर हो चुकी है।

क्या मोदी और भाजपा को अपनी लोकप्रियता पर भरोसा नहीं रहा?

मोदी और भाजपा के समर्थक अक्सर उनकी नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता की प्रशंसा करते हैं। लेकिन राम रहीम जैसे बलात्कारी और हत्यारे को बार-बार पैरोल पर रिहा करने से यही सवाल उठता है कि क्या भाजपा को अब अपनी ही लोकप्रियता पर भरोसा नहीं रहा है?

महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा की बात करने वाली भाजपा सरकार ने कैसे एक बलात्कारी को चुनाव प्रचार के समय बाहर निकालने का निर्णय लिया? यह कदम दर्शाता है कि भाजपा अपने चुनावी प्रचार में अब अपराधियों का सहारा ले रही है, जिससे उनकी नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

चुनाव आयोग की चुप्पी: क्या यह लोकतंत्र पर चोट नहीं है?

चुनाव आयोग का काम है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए, लेकिन राम रहीम सिंह जैसे अपराधियों को पैरोल पर रिहा करने के मामले में चुनाव आयोग की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। क्या यह आयोग की नाकामी नहीं है कि एक अपराधी को बार-बार चुनाव के समय पर बाहर लाया जाता है और चुनाव आयोग मूकदर्शक बना रहता है?

कई लोगों का मानना है कि 2014 के बाद से चुनाव आयोग ने अपनी रीढ़ खो दी है और वह अब सरकार के इशारों पर काम कर रहा है। यदि चुनाव आयोग ने सही समय पर इस मामले में कदम उठाया होता, तो शायद आज यह चर्चा ही नहीं होती कि भाजपा राम रहीम जैसे अपराधियों के भरोसे चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है।

क्या राम रहीम भाजपा का अघोषित स्टार प्रचारक है?

राम रहीम को जिस तरीके से बार-बार चुनाव के समय पर बाहर लाया जा रहा है, उससे यही सवाल उठता है कि क्या वह भाजपा का अघोषित स्टार प्रचारक है? भाजपा अपने नेताओं के प्रचार की जगह एक सजायाफ्ता अपराधी पर भरोसा कर रही है, जो कि पार्टी की गिरती नैतिकता और चुनावी रणनीति को दर्शाता है।

राम रहीम के बाहर आने से न केवल उसकी ताकत और प्रभाव बढ़ता है, बल्कि वह अपने समर्थकों के बीच जाकर भाजपा के पक्ष में प्रचार कर सकता है। क्या यह भाजपा की रणनीति है कि वह ऐसे लोगों के समर्थन से चुनाव जीतना चाहती है, जिनके नाम बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों में शामिल हैं?

मोदी सरकार के पतित होते आभामंडल का संकेत

मोदी सरकार का आभामंडल जो कभी अजेय माना जाता था, अब टूटने के कगार पर है। हाल ही में, हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार ज्ञानचंद गुप्ता के लिए वोट मांगने आए हिमाचल प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष डॉ. राजीव विंडल ने प्रधानमंत्री मोदी के 15 लाख रुपये वाले बयान को झुठलाते हुए कहा कि मोदी ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। इससे यह साफ होता है कि अब बीजेपी के नेता भी मोदी के बयानों को नकारने लगे हैं।

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किसानों पर भाजपा के जहरीले तीर और कंगना का प्रचार

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की नई सांसद कंगना रनौत और मुख्यमंत्री खट्टर ने किसानों के खिलाफ कई जहरीले बयान दिए, जो किसानों के बीच भाजपा की छवि को और धूमिल कर सकते हैं। किसानों पर किए गए हमले और जहरीले तीरों का असर चुनाव के परिणामों में साफ दिखाई देगा।

कंगना को चुनाव प्रचार में शामिल करना भाजपा की एक और रणनीति हो सकती है, लेकिन क्या यह रणनीति सफल होगी? कंगना और खट्टर जैसे नेताओं के बयानों से भाजपा को कितना फायदा होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

हरियाणा विधानसभा चुनाव: जनता का फैसला क्या होगा?

5 अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि राम रहीम सिंह जैसे अपराधियों को पैरोल पर रिहा कर चुनावी लाभ लेने की भाजपा की रणनीति कितनी कारगर साबित होती है। भाजपा के घोषित और अघोषित प्रचारक, जैसे कि राम रहीम, कंगना, और खट्टर, ने कितनी सफलता पाई है, इसका फैसला जनता करेगी।

 क्या भाजपा ने लोकतंत्र को गिरवी रख दिया है?

राम रहीम सिंह को बार-बार पैरोल पर रिहा करना, चुनाव आयोग की निष्क्रियता, और भाजपा नेताओं द्वारा मोदी के बयानों को झुठलाना, यह सब संकेत देते हैं कि भाजपा अब लोकतांत्रिक मूल्यों की परवाह किए बिना चुनावी जीत हासिल करने की कोशिश कर रही है।

क्या भाजपा राम रहीम जैसे अपराधियों के सहारे चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है? यह सवाल अब हर भारतीय के मन में है, और इसका जवाब आने वाले चुनाव परिणाम ही देंगे।

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 ये लेखक के निजी विचार है 

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