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दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा: कटनी में सरकारी भवनों में रैम्प निर्माण की मांग



Written & Edited By : ADIL AZIZ 

(जनहित की बात, पत्रकारिता के साथ)

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 एक अनसुनी आवाज

कटनी नगर निगम के वरिष्ठ पार्षद मिथलेश जैन एडवोकेट ने हाल ही में मुख्य सचिव, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल एवं कलेक्टर, कटनी को एक संवेदनशील पत्र लिखकर मांग की है कि जिले के सरकारी भवनों में दिव्यांग व्यक्तियों (Persons with Disabilities) की सुगम आवागमन सुविधा हेतु रैम्प (ramp) का निर्माण किया जाए। यह कदम सिर्फ एक “मांग” नहीं, बल्कि जीवन की गरिमा, न्याय और समानता की एक अनिवार्य आवश्यकता है।

यह प्रेस विज्ञप्ति उसी मांग को व्यापक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है — समस्या का माप, कारण, कानूनी आधार एवं अपेक्षित समाधान — ताकि सम्बंधित अधिकारी, समाज और आम जनता इस मुद्दे को न केवल समझें, बल्कि उसके लिए सक्रिय हों।




समस्या का स्वरूप : अवरोधों से घिरी ज़िंदगी

मौजूदा स्थिति

  • कटनी जिले में कलेक्टरेट भवन, नव-निर्मित संयुक्त तहसीलदार कार्यालय भवन, नगर निगम भवन एवं अन्य सरकारी कार्यालयों में रैम्प का निर्माण नहीं किया गया है।

  • परिणामी रूप से, दिव्यांग व्यक्ति सीढ़ियों के माध्यम से प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं, कार्यालय जाना मुश्किल हो जाता है, और उन्हें रोजमर्रा की प्रक्रियाओं में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

  • यह स्थिति न केवल शारीरिक असुविधा उत्पन्न करती है, बल्कि सामाजिक अलगाव, आत्मसम्मान की हानि एवं व्यक्तियों को सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देती है।

दिक्कतें और प्रभाव

  • दिव्यांग व्यक्ति जब प्राथमिक कार्यालयीन कार्य (जैसे पंजीकरण, आवेदन, प्रमाणपत्र, शिकायत निवारण आदि) नहीं कर पाते, तो उनका सरकारी दायित्व निर्वहन बाधित हो जाता है।

  • विशेषकर बुज़ुर्ग, व्हीलचेयर उपयोगकर्ता एवं अन्य गतिहीन जन समूह इस असुविधा से और भी अधिक प्रभावित होते हैं।

  • प्रशासन पर भरोसा कम होता है और न्याय तक पहुँच सीमित हो जाती है।


कानूनी और नीति-आधार : रैम्प बनाना एक नहीं, अनिवार्यता


पुराने और नए कानून : 1995 से 2016

  • पहले Persons with Disabilities (Equal Opportunities, Protection of Rights and Full Participation) Act, 1995 ने दिव्यांग व्यक्तियों को समान अवसर एवं पहुँच की प्राथमिक मान्यताएँ दी थीं। Wikipedia+2National Human Rights Commission+2

  • लेकिन 2016 में इसे Rights of Persons with Disabilities (RPwD) Act, 2016 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसे लागू 19 अप्रैल 2017 से माना जाता है। Vikaspedia Social Welfare+3India Code+3Drishti Judiciary+3

  • नए कानून में दिव्यांगता की श्रेणियाँ बढ़ाकर 21 कर दी गई हैं और “बरियर्स-फ्री” वातावरण सुनिश्चित करने के प्रावधान शामिल किए गए हैं। India Development Review+4Wikipedia+4Vikaspedia Social Welfare+4

कानूनी दायित्व एवं निर्देश

  • RPwD अधिनियम के अंतर्गत, सार्वजनिक भवनों को सुगम एवं समावेशी बनाना “उचित सुविधा” के दायित्व में आता है। Vikaspedia Social Welfare+2niepvd.nic.in+2

  • केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा संचालित “’Accessible India Campaign’ (Sugamya Bharat Abhiyan)” ने सरकारी भवनों को सुलभ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। Press Information Bureau+2Wikipedia+2

  • केंद्रीय योजना के अंतर्गत अब तक सैकड़ों सरकारी भवनों में पहुँच (accessibility) सुधार कार्य किए जा चुके हैं। Press Information Bureau+2Hindustan Times+2

  • अनुपालन नहीं करने पर कानूनी कार्रवाई, शिकायत प्रक्रिया एवं जनभागीदारी की माँग हो सकती है।


अन्य उदाहरण : देश में समानाल अनुभव

  • दिल्ली सरकार ने “Sugamya Delhi Abhiyan” के अंतर्गत सभी सरकारी भवनों, खेल स्टेडियमों आदि को दिव्यांग अनुकूल बनाने की योजना बनाई है, जिसमें रैम्प, लिफ्ट, ब्रीएल साइन आदि शामिल हैं। The Times of India+1

  • महाराष्ट्र के पुणे में 1,100 से अधिक सरकारी भवनों को दिव्यांगों के अनुकूल बना देने का आदेश जारी किया गया है। The Times of India

  • केंद्रीय स्तर पर, रेल विदेशों सहित 5,639 स्टेशनों में रैम्प स्थापित किए गए हैं। Hindustan Times

  • सार्वजनिक भवनों के पहुँच ऑडिट (access audit) और उनके परिणामों के आधार पर सुधार कार्य किये जा रहे हैं। Digital Sansad+1

  • सामाजिक जागरूकता एवं संगठन जैसे “RampMyCity” ने अब तक 500+ सार्वजनिक स्थानों को सुलभ बनाने का काम किया है। The Logical Indian

इससे स्पष्ट है कि देश स्तर पर यह एक सक्रिय सुधार-प्रक्रिया है, और कटनी को इसमें पीछे नहीं रहना चाहिए।


अपेक्षित दिशानिर्देश : कैसे बने सुलभ भवन

नीचे कुछ मार्गदर्शक बिंदु दिए जा रहे हैं, जिनका ध्यान रख कर रैम्प डिज़ाइन और निर्माण किया जाना चाहिए:

  1. ढलान (Slope) एवं चौड़ाई
     - सामान्यतः 1:12 की ढलान (एक मीटर ऊँचाई पर 12 मीटर लंबी रैम्प) स्वीकार्य मानी जाती है।
     - कम ऊँचाई के लिए (0.5 मीटर तक) 1:10 तक हो सकती है।
     - रैम्प की न्यूनतम चौड़ाई लगभग 90 से 100 सेमी होनी चाहिए ताकि व्हीलचेयर आराम से आ जा सके।

  2. हँडरेल / पार्श्व रेलिंग
     - रैम्प के दोनों ओर मजबूती से पकड़ने योग्य रेलिंग हो।
     - ऊँचाई लगभग 75-85 सेमी, तथा यदि संभव हो तो दूसरी रेलिंग 60 सेमी की ऊँचाई पर।

  3. लैंडिंग या प्लेटफ़ॉर्म
     - यदि रैम्प लंबी हो, प्रति 10 मीटर या 12 मीटर पर समतल लैंडिंग होना चाहिए ताकि व्यक्ति विश्राम कर सके।
     - लैंडिंग क्षेत्र कम से कम 1.5 × 1.5 मीटर का हो।

  4. सतह और सामग्री
     - फिसलन-रोधी सतह होनी चाहिए (non-slip)।
     - वर्षा व पानी जमाव की स्थिति में अच्छी ड्रेनेज व्यवस्था हो।
     - किनारे पर चुनिंदा उठाव (curb) जैसे 5 सेंटीमीटर ऊँचाई ताकि व्हीलचेयर पहिया बाहर न जाए।

  5. दिशा संकेत, ब्रेल लेबलिंग और रंग विभेदन
     - यदि संभव हो, ब्रेल संकेत, पठनीय निशान, रंग विभेद आदि हों, जिससे दृष्टिबाधित लोगों को मार्ग पहचानने में आसानी हो।
     - संकेत बत्ती या प्रकाश व्यवस्था हो ताकि रात्रि में भी उपयोग संभव हो।

  6. समेकन और नियमित निरीक्षण
     - निर्माण के बाद समय-समय पर जांच, मरम्मत व रखरखाव करना अनिवार्य है।
     - उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया लेना और सुधार करना चाहिए।

  7. निष्ठा (Dedicated) बजट एवं निगरानी प्रणाली
     - निर्माण के लिए विशेष बजट रखें।
     - पीडब्ल्यूडी (Public Works Department) / भवन निर्माण एजेंसियों को समय-सीमा सहित निर्देश दें।
     - स्थानीय दिव्यांगों, नागरिक समाज और सामाजिक कार्यकर्ताओं की निगरानी सुनिश्चित करें।


सुझाव एवं प्रस्तुति

मिथलेश जैन एडवोकेट द्वारा की गई यह मांग न केवल कटनी की समस्या को हल करने की दिशा में एक ठोस कदम है, बल्कि इसे पूरे मध्यप्रदेश के लिए उदाहरण बनाया जाना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित सुझाव अपनाये जा सकते हैं:

  • अखिल भारतीय मंच पर आवाज उठाना: स्थानीय मीडिया, सामाजिक मीडिया, पत्र लेख आदि जरिए इस मांग को व्यापक जनता के बीच पहुंचाएँ।

  • सहभागिता सुनिश्चित करना: दिव्यांग व्यक्तियों और उनकी संस्थाों को निर्माण योजना, ऑडिट और निरीक्षण में शामिल करें।

  • दोषी जवाबदेही की व्यवस्था: यदि किसी विभाग ने रैम्प निर्माण नहीं किया, तो सार्वजनिक शिकायत, RTI या न्यायालयीन विकल्पों का सहारा लिया जाना चाहिए।

  • अनुकूल मॉडल भवनों का अन्वेषण: देश में सफल उदाहरण (जैसे दिल्ली, पुणे आदि) से सीख लेकर स्थानीय अनुकूल मॉडल लागू करें।

  • नियमित रिपोर्टिंग और पदानुक्रम: प्रशासन स्तर पर रिपोर्टिंग, समीक्षा बैठकें और प्रतिक्रिया तंत्र सुनिश्चित करें।



दिव्यांग व्यक्तियों को सरकारी सेवाओं से वंचित रखना न्यायसंगत नहीं है। रैम्प का निर्माण न केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि आधिकारिक दायित्व, मानवाधिकार, और समानता की पहचान है। कटनी प्रशासन, मध्यप्रदेश सरकार और केंद्र सरकार — सभी को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए।

मिथलेश जैन एडवोकेट की यह मांग यदि सुनवाई पाये और कार्यान्वित हो, तो कटनी एक प्रेरणादायक उदाहरण बन सकता है — जहाँ सरकारी भवन हर नागरिक के लिए सुलभ हों, चाहे उसकी चाल धीमी हो या व्हीलचेयर का सहारा हो।

इस मांग को सुना जाना चाहिए और वास्तविकता में बदल जाना चाहिए — क्योंकि हर इंसान को प्रवेश का अधिकार है

पब्लिक सब जानती है… लेकिन सवाल अब भी बाकी है — जिम्मेदारी कौन लेगा?





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