क्या जब विश्वविद्यालय से निकले लोग रिक्शा चलायेंगे और जेल से निकले लोग देश चलायेंगे, तब तरक्की करेगा देश?
written by : ASHWINI BADGAIYA (*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*_स्वतंत्र पत्रकार_)
देश में घट रही घटनाओं पर लगातार सवाल उठते रहे हैं, और अब एक बार फिर से मुद्दा उभर कर सामने आ रहा है—क्या देश की तरक्की का यही पैमाना है कि योग्य और शिक्षित व्यक्ति हाशिये पर धकेले जाएं और अपराधी शक्तियाँ सत्ता पर काबिज हों? एक ओर जहां सेना के सम्मानित अधिकारी और उनके परिवार पर हमले हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लोकतंत्र के चार स्तंभों की गिरती साख से यह सवाल उठने लगा है कि क्या देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है?
सेना के अधिकारी के साथ अमानवीयता: एक गंभीर सवाल
हाल ही में ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से आई खबर ने देश को स्तब्ध कर दिया। एक सेना के कैप्टन की मंगेतर, जो कि खुद एक ब्रिगेडियर की बेटी हैं, के साथ भरतपुर थाने में हुई मारपीट और यौन उत्पीड़न ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। जब यह महिला और उनके मंगेतर युवकों द्वारा छेड़छाड़ की शिकायत करने थाने पहुंचे, तो पुलिस ने शिकायत दर्ज करने के बजाय कैप्टन को लॉकअप में बंद कर दिया और महिला के साथ बदसलूकी की। पीड़िता के अनुसार, पुलिसकर्मियों ने उसके कपड़े फाड़ दिए और लगभग नग्न अवस्था में खड़ा कर दिया। यहाँ तक कि इंस्पेक्टर-इन-चार्ज ने भी अपनी पैंट उतारकर पीड़िता का यौन उत्पीड़न करने की कोशिश की। यह घटना न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय सेना के मान-सम्मान पर भी बड़ा आघात है।
महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल: क्या देश में महिलाएं सुरक्षित हैं?
यह पहली बार नहीं है जब देश में महिलाओं के साथ इस तरह का दुर्व्यवहार सामने आया हो। पिछले कुछ महीनों में मणिपुर, अयोध्या और बिहार जैसी जगहों पर भी महिलाओं के साथ बर्बरता की घटनाएँ सामने आई हैं। मणिपुर में कुकी-जोभी समुदाय की दो महिलाओं के साथ की गई क्रूरता हो, या अयोध्या में दलित लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना, हर बार महिलाओं की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े होते हैं।
देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से लोग उम्मीद कर रहे थे कि वे इन घटनाओं पर अपनी आवाज उठाएंगी, खासकर जब वे खुद देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। लेकिन उनकी खामोशी ने जनता को निराश किया है।
सेना के अफसरों के साथ भी अन्याय: क्या सेनाध्यक्ष की भूमिका सवालों के घेरे में है?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भारत की सेनाध्यक्ष भी हैं, लेकिन हाल के समय में सेना के अफसरों और उनके परिवार के साथ हो रहे दुर्व्यवहार ने उनके इस पद की गरिमा पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। एयरफोर्स में एक महिला अफसर के साथ यौन उत्पीड़न की घटना भी सुर्खियों में आई, जहां विंग कमांडर को दोषी ठहराए जाने के बावजूद उन्हें समय से पहले जमानत मिल गई। यह घटनाएँ इस बात को दर्शाती हैं कि यदि सेना के अफसर और उनके परिवार के सदस्य ही सुरक्षित नहीं हैं, तो आम जनता की सुरक्षा का क्या होगा?
जातिवाद और राजनीति का खेल: क्या सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है?
महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू के प्रति लोगों की अपेक्षाएँ इसलिए भी बढ़ी थीं क्योंकि वे एक आदिवासी समुदाय से आती हैं। लेकिन ओडिशा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे भाजपा शासित राज्यों में महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों पर उनकी चुप्पी ने जनता को निराश किया है। मणिपुर, अयोध्या, और दिल्ली में घटित घटनाओं पर उनकी प्रतिक्रिया न आने से यह सवाल उठता है कि क्या वे भी जातिवाद और राजनीतिक समीकरणों में उलझी हैं?
क्या लोकतंत्र के स्तंभ हिल चुके हैं?
देश के लोकतांत्रिक चार स्तंभ—विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया—में जिस तरह से गिरावट आ रही है, वह बेहद चिंताजनक है। जब शिक्षा और योग्यता को दरकिनार कर दिया जाता है और अपराधियों को प्रमुख पदों पर बैठाया जाता है, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि देश किस दिशा में जा रहा है।
"जब विश्वविद्यालय से निकले लोग रिक्शा चलायेंगे और जेल से निकले लोग देश, तब ऐसे ही तरक्की करेगा देश"—यह वाक्य आज के दौर में देश की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है। लोकतंत्र की बुनियादी जरूरतें—समानता, न्याय, और सुरक्षा—तब धूमिल हो जाती हैं, जब अपराधियों को सजा के बजाय सत्ता का संरक्षण मिलता है।
महामहिम राष्ट्रपति की भूमिका: क्या जनता की उम्मीदें पूरी होंगी?
देश की आधी आबादी राष्ट्रपति मुर्मू को अपनी आवाज मानकर देख रही है। महिलाओं को यह उम्मीद है कि महामहिम राष्ट्रपति उनके हितों की रक्षा करेंगी और उनके लिए खड़ी होंगी। लेकिन अब तक की घटनाओं ने यह दर्शाया है कि राष्ट्रपति ने कई संवेदनशील मुद्दों पर चुप्पी साध ली है।
हालांकि, यह उम्मीद आज भी जीवित है कि राष्ट्रपति मुर्मू आने वाले समय में देश के सभी हिस्सों की महिलाओं की आवाज बनेंगी, न कि केवल कुछ राज्यों या राजनीतिक दलों के। जनता को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है कि वे पूरे भारत की राष्ट्रपति हैं, न कि सिर्फ भारतीय जनता पार्टी की प्रतिनिधि।
निष्कर्ष
देश की वर्तमान स्थिति यह मांग करती है कि देश की सबसे बड़ी पदों पर बैठे लोग जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतरें। जब सेना के अधिकारी, महिला अफसर, और आम महिलाएं ही सुरक्षित नहीं हैं, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं? क्या लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही हैं, या फिर सत्ता का खेल ही देश की दिशा तय कर रहा है?
महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से देश की महिलाएं, विशेषकर हाशिये पर खड़ी महिलाएं, यह अपेक्षा करती हैं कि वे उनकी आवाज बनेंगी और उन्हें न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
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