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अँधा कानून: फिल्म से अदालत के अजीब फैसले तक – जब न्याय व्यवस्था सवालों के घेरे में अँधा कानून फिल्म से सच्चाई की तुलना – एक विचारणीय मुद्दा

 

 आपने अमिताभ बच्चन और राजनीकान्त स्टार्रर फिल्म अँधा कानून फिल्म का गाना तो सुना होगा ये अँधा कानून है ,  नहीं सुना तो लीजिये यूट्यूब के सौजन्य से पहले ये गाना सुनिए , फिर आपको ये गाना सुनने की असल वजह भी बता हु। 
  

अब आपको इसी फिल्म का एक सीन दिखते हैं जिसमे अमिताभ बच्चन अमरीश पूरी का मर्डर कर देते है वो भी भरी अदालत में और गौरतलब ये है की अदालत उसके बाद भी अमिताभ को गिरफ्तार नहीं कर पाती , ऐसा क्यों होता है की अदालत अमितभको गिरफ्तार नहीं कर पाती , फिर से एक बार यूट्यूब के सौजन्य से देखिये 

अब ये सब सीन दिखने का मतलब क्या है दरअसल अभी हाल  ही में मध्यप्रदेश के नगरीय  प्रशासन  मंत्री कैलाश विजय वर्गीय के पुत्र पूर्व विधायक आकाश विजय वर्गीय को उनके द्वारा नगर निगम के अधिकारी को बल्ले से मारकर घायल कर दिया था जो की वीडियो में साफ़ दिख रहा है लेकिन अदालत को वो वीडियो नहीं दिखा और उसको साक्ष्य नहीं माना  गया , नतीजा आकाश विजयवर्गीय बा इज़त बरी अब इसको अँधा कानून फिल्म से जोड़कर मत देखिएगा मैंने तो बस आपके मनोरंजन के लिए  अंधा कानून फिल्म का गाना और सीन आपको दिखाया है 
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फिल्में हमारे समाज का आईना होती हैं, और कभी-कभी फिल्में जो दर्शाती हैं, वह असल जिंदगी में भी कहीं ना कहीं घटित होता है। 1983 में आई सुपरहिट फिल्म अँधा कानून में अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और अमरीश पुरी की जबरदस्त अदाकारी ने दर्शकों को बांध लिया था। इस फिल्म का एक प्रमुख गाना “ये अँधा कानून है” काफी लोकप्रिय हुआ, और इस गाने ने फिल्म की थीम को बखूबी व्यक्त किया। यह गाना एक ऐसे न्यायिक सिस्टम की ओर इशारा करता है, जो अपराधियों को सजा नहीं दे पाता।

फिल्म का यादगार दृश्य और उसकी वास्तविकता से तुलना

फिल्म के एक सीन में अमिताभ बच्चन अपने पिता के हत्यारे अमरीश पुरी को अदालत में ही मार डालते हैं, लेकिन कानून की आंखों में पट्टी बंधी होती है। हैरानी की बात यह थी कि यह सब अदालत के सामने हुआ, और फिर भी अमिताभ को गिरफ्तार नहीं किया जा सका। यह सीन न केवल दर्शकों के मन में एक गहरी छाप छोड़ता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या कानून वाकई अंधा है?

यह सीन कल्पना पर आधारित था, लेकिन हाल ही की एक घटना ने इस सीन को हकीकत के करीब ला दिया।

मध्यप्रदेश में "अँधा कानून" का उदाहरण?

हाल ही में, मध्यप्रदेश के एक चर्चित मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए। मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र और पूर्व विधायक आकाश विजयवर्गीय का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने नगर निगम के अधिकारी को बैट से पीटते हुए साफ तौर पर देखा गया। इस वीडियो ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था, क्योंकि यह घटना सरेआम और कैमरों के सामने हुई थी। लोगों ने इस घटना की कड़ी निंदा की और सवाल उठाया कि क्या न्याय व्यवस्था सबके लिए समान है?

लेकिन जब मामला अदालत में गया, तो आकाश विजयवर्गीय को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। अदालत ने वीडियो को साक्ष्य के रूप में नहीं माना, और आखिरकार, आकाश विजयवर्गीय को बाइज्जत बरी कर दिया गया।

"अँधा कानून" फिल्म से न जोड़ें, बस तुलना के लिए देखें

कई लोग इस घटना की तुलना अँधा कानून फिल्म के दृश्य से कर रहे हैं, जहां अमिताभ बच्चन अदालत में हत्या करने के बाद भी कानून की गिरफ्त में नहीं आते। परंतु यहाँ यह समझना जरूरी है कि फिल्म और वास्तविकता में फर्क होता है। फिर भी, जब कानून व्यवस्था ऐसे मामलों में सवालों के घेरे में आती है, तो इस तरह की तुलना स्वाभाविक रूप से मन में आती है।

फिल्म के दृश्य और इस घटना के बीच एक अदृश्य समानता है, जो बताती है कि कभी-कभी हमारी न्यायिक व्यवस्था भी अंधी हो सकती है।

साक्ष्य की कमी या राजनीतिक प्रभाव?

आकाश विजयवर्गीय के मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब एक घटना का वीडियो साक्ष्य के रूप में उपलब्ध हो, तो उसे न्यायालय द्वारा साक्ष्य क्यों नहीं माना गया? क्या यह मामला सिर्फ साक्ष्य की कमी का है, या फिर इसमें राजनीतिक दबाव और प्रभाव की भूमिका भी हो सकती है?

देश के आम नागरिक यह देखना चाहते हैं कि कानून सभी के लिए समान हो, चाहे वह एक आम आदमी हो या फिर किसी नेता का बेटा। इस मामले ने न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं।

न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता

यह मामला सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि यह हमारी न्यायिक प्रक्रिया में मौजूद कमियों की ओर इशारा करता है। जब ऐसी घटनाओं में साफ-साफ साक्ष्य होते हुए भी आरोपियों को बरी कर दिया जाता है, तो यह न्याय व्यवस्था की साख पर चोट करता है।

कानून का उद्देश्य अपराधियों को सजा देना और निर्दोषों को न्याय दिलाना है। लेकिन जब कानून की आंखों पर पट्टी बंधी होती है और अपराधी खुलेआम बच निकलते हैं, तो जनता के मन में कानून के प्रति आस्था कमजोर पड़ने लगती है।

समाज और कानून: फिल्मी तुलना क्यों महत्वपूर्ण है?

फिल्में भले ही कल्पना पर आधारित हों, लेकिन वे समाज के यथार्थ को दर्शाती हैं। जब जनता फिल्मों में न्याय की असफलता को देखती है और फिर वास्तविकता में उसी प्रकार के घटनाक्रम घटित होते हैं, तो यह उनके लिए एक बड़ा झटका होता है।

अँधा कानून जैसी फिल्में समाज को सोचने पर मजबूर करती हैं कि अगर कानून अपराधियों को सजा नहीं दे पा रहा है, तो इसमें सुधार की कितनी आवश्यकता है।

"अँधा कानून" सिर्फ एक फिल्म नहीं, यह एक सच्चाई का आईना है

अँधा कानून सिर्फ एक फिल्म नहीं है, यह समाज के उस पक्ष को उजागर करती है, जहां कभी-कभी कानून सही दिशा में काम नहीं कर पाता। मध्यप्रदेश की हाल की घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारी न्यायिक व्यवस्था वाकई में अंधी है?

इस घटना के बाद, समाज को यह उम्मीद है कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुधार होंगे, ताकि हर नागरिक को न्याय मिल सके, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो।

 Akash Vijayvargiya, Kailash Vijayvargiya, Judicial System, Court Decision, Film Comparison

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