महामहिम राष्ट्रपति का बयान: राजनीतिक बयानबाजी से परहेज क्यों जरूरी?
written by : *अश्वनी बडगैया अधिवक्ता* _स्वतंत्र पत्रकार_
महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ हुई भयावह घटना पर चिंता जताई, एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। इस बयान के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या महामहिम को राजनीतिक बयानबाजी से परहेज करना चाहिए? राष्ट्रपति पद, जो निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों का प्रतीक होता है, उससे इस तरह के बयान की उम्मीद की जाती है जो पूरे देश के लिए समान हो, न कि किसी विशेष राज्य या घटना के लिए। इस लेख में हम महामहिम के इस बयान और इसके पीछे के राजनीतिक निहितार्थ पर चर्चा करेंगे।
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कोलकाता घटना पर महामहिम की प्रतिक्रिया: महामहिम राष्ट्रपति ने कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या की घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि वे इस घटना से स्तब्ध और भयभीत हैं। कोलकाता में हो रहे प्रदर्शनों और अपराधियों के बेख़ौफ़ घूमने की स्थिति पर भी महामहिम ने अपनी चिंता जताई। उनके इस बयान ने न केवल कोलकाता की घटना को उजागर किया, बल्कि गैर-भाजपा शासित प्रदेशों में कानून व्यवस्था की स्थिति पर भी सवाल उठाए।
भाजपा शासित प्रदेशों में चुप्पी क्यों? महामहिम के इस बयान के बाद सवाल उठना लाजमी है कि वे भाजपा शासित प्रदेशों में हो रही इसी तरह की घटनाओं पर चुप क्यों हैं? मणिपुर में कुकी-जोभी समुदाय की महिलाओं के साथ हुए अमानवीय व्यवहार पर उनकी चुप्पी ने कई लोगों को निराश किया। इस घटना ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं, लेकिन राष्ट्रपति की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
महिला पहलवानों के संघर्ष पर चुप्पी: देश की महिला पहलवानों ने जब भाजपा सांसद और राष्ट्रीय कुश्ती एसोसिएशन के अध्यक्ष द्वारा किये गए यौन उत्पीड़न के खिलाफ़ आवाज उठाई, तब भी महामहिम ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जंतर-मंतर पर हो रहे प्रदर्शनों में महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार पर भी महामहिम की चुप्पी सवालों के घेरे में है।
बिलकिस बानो केस और न्याय की मांग: बिलकिस बानो के बलात्कारियों की समय से पहले रिहाई और उनका सेलेब्रिटी की तरह स्वागत, एक शर्मनाक घटना थी। इस पर भी महामहिम ने कोई टिप्पणी नहीं की। क्या ऐसे मामलों में चुप रहना उचित है, जब न्याय की आस लगाए पीड़ित और उनके परिवार की निगाहें राष्ट्रपति पद पर टिकी हों?
महामहिम का दायित्व और राजनीतिक संतुलन: राष्ट्रपति का पद देश का सबसे ऊंचा संवैधानिक पद है, जो निष्पक्षता और न्याय का प्रतीक होता है। इस पद से राजनीतिक बयानबाजी की उम्मीद नहीं की जाती, बल्कि सभी प्रदेशों और नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए। महामहिम के इस बयान से यह संदेश जा सकता है कि वे केवल गैर-भाजपा शासित प्रदेशों में हो रही घटनाओं पर ही प्रतिक्रिया देती हैं, जबकि भाजपा शासित प्रदेशों में वे चुप रहती हैं।
राजनीतिक निहितार्थ और राष्ट्रपति पद की गरिमा: महामहिम का यह बयान भाजपा की गिरती लोकप्रियता को सहारा देने का प्रयास भी माना जा सकता है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि उनका बयान राजनीतिक निहितार्थ लिए हुए है, खासकर जब वे केवल गैर-भाजपा शासित प्रदेशों की घटनाओं पर ही प्रतिक्रिया दे रही हैं। यह स्थिति राष्ट्रपति पद की गरिमा को कम करती है और निष्पक्षता पर सवाल उठाती है।
महामहिम से अपेक्षाएं: देश के नागरिकों की महामहिम से अपेक्षाएं हैं कि वे सभी प्रदेशों और नागरिकों के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करें। महामहिम का दायित्व है कि वे न्याय, समानता और संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सर्वोपरि रखें। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि वे राजनीतिक बयानबाजी से परहेज करें और देश के सभी हिस्सों में हो रही घटनाओं पर समान रूप से प्रतिक्रिया दें।
Conclusion: महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का कोलकाता की घटना पर बयान एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति पद पर बैठे व्यक्ति को राजनीतिक बयानबाजी से परहेज करना चाहिए? राष्ट्रपति का पद निष्पक्षता, न्याय और संविधान का प्रतीक है, और ऐसे में यह आवश्यक है कि महामहिम सभी प्रदेशों और नागरिकों के साथ समान व्यवहार करें। उनकी ओर से राजनीतिक निहितार्थ लिए हुए बयान न केवल पद की गरिमा को कम करते हैं, बल्कि नागरिकों की अपेक्षाओं पर भी सवाल उठाते हैं। देश के सभी हिस्सों में हो रही घटनाओं पर समान रूप से प्रतिक्रिया देना और न्याय की मांग करना ही राष्ट्रपति पद की सच्ची जिम्मेदारी है।
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