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रेपिस्टों और हत्यारों का राज: न्यायपालिका और सरकारें कब जागेंगी?: न्याय की चुप्पी:महिला सुरक्षा की खोखली बातें: कब जागेगी सरकार?



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written by  : *अश्वनी बडगैया अधिवक्ता* _स्वतंत्र पत्रकार_

edited by : Adil Aziz

कहाँ तो तय चिरागां हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए

उठो द्रोपदी वस्त्र सम्हालो, अब गोविंद ना आयेंगे
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  • बुलडोजर न्याय का दौर: अदालतों की चुप्पी और समाज की जिम्मेदारी
  • राजनीति के दुशासन: जनता कब उठाएगी आवाज?
  • बलात्कारियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनी सरकारें: जनता का सवाल
  • कब खत्म होगी राजनीति में अपराधियों की भरमार?
  • महिला सुरक्षा और न्यायपालिका की भूमिका: खोखले दावे और सच्चाई
  • कानून का राज या बुलडोजर न्याय? देश की अदालतें और सरकारें सवालों के घेरे में
  • राजनीति के गुनहगार: क्या न्याय की आस बेमानी है?
  • परिचय

    देश की सबसे बड़ी पंचायत से लेकर राज्यों की विधानसभाओं तक, हर जगह अपराधियों का कब्जा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति में रेपिस्ट और मर्डरों की भरमार हो गई है। ऐसी कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं है जिसमें बलात्कारियों और हत्यारों का जमावड़ा न हो। चाहे बात संसद की हो या विधानसभा की, हर जगह इनकी मौजूदगी लोकतंत्र के चेहरे पर कलंक की तरह है। क्या देश की न्याय प्रणाली और सरकारें वाकई में आम जनता को न्याय दिलाने में असमर्थ हो चुकी हैं? इस सवाल के जवाब की तलाश में यह लेख है।

    महिला उत्पीड़न: कब जागेगा समाज?

    देश का एक भी राज्य ऐसा नहीं है जहां बच्चियों और महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटनाएं न होती हों। जब तक कोई हाई-प्रोफाइल मामला सामने नहीं आता, तब तक पुलिस, सरकार, और अदालतें भी इस पर ध्यान नहीं देतीं। गरीबों और असहायों के साथ होने वाले अन्याय को दबाने की कोशिशें भी की जाती हैं। पुलिस कई बार रिपोर्ट लिखने के बजाय पीड़िता और उसके परिजनों पर सुलह करने का दबाव बनाती है। मीडिया भी अपने राजनीतिक आकाओं और चंद पैसों की खातिर इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहता है।

    राजनीति में अपराधियों की भरमार

    देश के विभिन्न राज्यों में बलात्कार और हत्याओं की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। चाहे बात पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की हो या नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी की, हर जगह महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं। पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश - ये सभी राज्य इस सूची में शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी के पास जनप्रतिनिधि बलात्कारियों का अच्छा-खासा कुनबा है। कांग्रेस, तेलगू देशम, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, सभी के पास ऐसे अपराधियों का जमावड़ा है।

    न्यायिक व्यवस्था पर सवाल

    अदालतों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। कोलकाता में मेडिकल कॉलेज की प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के मामले में पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने में लापरवाही दिखाई। महाराष्ट्र के बदलापुर में भी स्कूली बच्ची के साथ यौनाचार के मामले में पुलिस ने यही रवैया अपनाया। यदि जनता सड़कों पर नहीं उतरती तो शायद पुलिस इन मामलों को दबा देती। इन मामलों में अदालतों की भूमिका पर भी उंगलियां उठ रही हैं।

    राजस्थान और अन्य राज्यों में महिला सुरक्षा की स्थिति

    राजस्थान में 3 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या, 63 वर्षीय महिला के साथ गैंग रेप, उत्तर प्रदेश में नर्स के साथ डॉक्टर द्वारा रेप, उत्तराखंड में युवती के साथ गैंग रेप, हरियाणा में मेडिकल छात्रा के साथ हैवानियत, मध्यप्रदेश में नाबालिग का बलात्कार, बिहार में दलित युवती का अपहरण और गैंग रेप जैसी घटनाएं रोजमर्रा का हिस्सा बन गई हैं। लेकिन इन घटनाओं पर सरकारों और अदालतों की ओर से कोई सख्त कार्रवाई नहीं होती।

    बलात्कारियों के समर्थन में सरकारें

    महिला सुरक्षा और अपराधियों को सजा दिलाने की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी का दोहरा मापदंड सामने आता है। जब पश्चिम बंगाल में कोई घटना होती है तो भाजपा उस पर छाती पीटती है, लेकिन भाजपा शासित प्रदेशों में हुई घटनाओं पर वह चुप्पी साध लेती है। हाल ही में राम रहीम सिंह को सातवीं बार पैरोल पर रिहा किया गया, और उसी के साथ हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित कर दी गईं। यह सब कुछ देखने में ऐसा लगता है जैसे बीजेपी की सरकारें बलात्कारियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गई हैं।

    बुलडोजर न्याय और अदालतों की चुप्पी

    उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में अदालती न्याय का स्थान बुलडोजर न्याय ने ले लिया है। अदालतें जैसे सांस लेना बंद कर चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार केवल दिखावे के लिए न्याय की बात करता है, लेकिन असल में वह अपराधियों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाता। बाबा रामदेव, बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद ने दवाइयों के भ्रामक विज्ञापन से अरबों कमाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माफी मांगने पर उनकी अवमानना कार्रवाई बंद कर दी। इससे साफ जाहिर होता है कि आर्थिक अपराध और महिला सुरक्षा के मामलों में अदालतें कोई सख्त रुख नहीं अपनातीं।

    निष्कर्ष

    देश की न्याय प्रणाली और सरकारों की भूमिका पर सवाल उठाना आज के समय की जरूरत है। बलात्कारियों और हत्यारों को पनाह देने वाली सरकारें और अदालती न्याय की जगह बुलडोजर न्याय का सहारा लेना, यह सब देश के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स इन मुद्दों पर संज्ञान लेकर सरकारों को कानून का पालन कराने के लिए मजबूर करेंगे? क्या देश में कानून का राज स्थापित होगा? यह सब सवाल हैं, जिनका जवाब समाज को ढूंढना होगा। अगर न्यायपालिका और सरकारें अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करतीं तो समाज को खुद अपने अधिकारों के लिए आवाज उठानी होगी।

    CREDIT : ASHWINI BADGAIYA , ADVACATE 

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