छिंदवाड़ा कफ सीरप कांड पर सीएम मोहन यादव की सख़्ती, लेकिन क्या सिर्फ़ सस्पेंशन काफी है?
Written & Edited By : आदिल अज़ीज़
छिंदवाड़ा से उठी चिंता की लहर — कफ सीरप कांड ने हिलाया पूरा प्रदेश
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में सामने आए कफ सीरप कांड ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। कथित रूप से नकली या मिलावटी कफ सीरप पीने से कई बच्चों की तबीयत बिगड़ने की खबर ने न सिर्फ़ अभिभावकों की नींद उड़ा दी, बल्कि प्रशासनिक तंत्र की पोल भी खोल दी।
राज्य सरकार हरकत में आई और मुख्यमंत्री मोहन यादव ने तत्काल सख़्त कार्रवाई के आदेश दिए। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या केवल सस्पेंशन इस गंभीर अपराध का पर्याप्त जवाब है?
सीएम मोहन यादव की त्वरित कार्रवाई
घटना के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बिना देर किए कार्रवाई की।
सरकार ने ड्रग कंट्रोलर आईएएस अधिकारी दिनेश मौर्य को उनके पद से हटा दिया।
इसके साथ ही छिंदवाड़ा ड्रग इंस्पेक्टर गौरव शर्मा और जबलपुर ड्रग इंस्पेक्टर शरद जैन को निलंबित कर दिया गया।
इसी तरह खाद्य एवं औषधि प्रशासन के डिप्टी डायरेक्टर पर भी कार्रवाई की गई है।
सरकार की यह फुर्ती इस बात का संकेत है कि वह मामले की गंभीरता को समझ रही है और जनता को यह संदेश देना चाहती है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं।
सवाल अब भी बाकी: क्या सस्पेंशन ही न्याय है?
सरकार की इस सख़्ती के बावजूद आम जनता के मन में एक गहरा सवाल उठ रहा है —
क्या केवल सस्पेंशन पर्याप्त है?
जनता का मानना है कि यह केवल विभागीय लापरवाही नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है।
जब दोषपूर्ण या नकली दवाएं बच्चों तक पहुँच जाती हैं, तो यह अपराध बन जाता है — न कि केवल एक “गलती”।
लोगों का कहना है कि ऐसे मामलों में केवल निलंबन नहीं, बल्कि आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए ताकि जिम्मेदार अधिकारियों को सज़ा मिले और भविष्य के लिए मिसाल बने।
जनता का गुस्सा और सरकार से उम्मीदें
छिंदवाड़ा से लेकर भोपाल तक जनता के बीच आक्रोश है।
लोग कह रहे हैं कि जो अधिकारी जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तनख़्वाह लेते हैं, अगर वही अपने स्वार्थ या लापरवाही से नागरिकों की जान खतरे में डालें, तो उन्हें सिर्फ़ निलंबित करना पर्याप्त नहीं है।
यह मामला सिर्फ़ कुछ दवाओं तक सीमित नहीं है — यह प्रशासनिक जवाबदेही का मुद्दा है।
जनता चाहती है कि दोषी अधिकारियों पर कठोर दंडात्मक कार्रवाई हो, जिससे अन्य अधिकारी भी सबक लें कि जनहित की अनदेखी के गंभीर परिणाम होते हैं।
सिस्टम की साख पर सवाल
यह घटना सरकार और प्रशासनिक मशीनरी पर गहरे सवाल खड़े करती है।
अगर ड्रग विभाग की निगरानी के बावजूद नकली कफ सीरप बाजार में बिक रही है, तो यह सिस्टम की असफलता है।
इससे यह भी स्पष्ट होता है कि निरीक्षण प्रक्रिया में लापरवाही या मिलीभगत जैसी गंभीर खामियां हैं।
अगर ऐसे मामलों में दोषियों पर कानूनी शिकंजा नहीं कसा गया, तो आने वाले समय में यह और बड़े घोटालों को जन्म देगा।
जनता को यह महसूस होगा कि सरकार केवल “दिखावटी एक्शन” ले रही है।
कानूनी कार्रवाई की मांग तेज़
राज्यभर में यह मांग तेज़ हो गई है कि इस पूरे मामले की सीबीआई या एसआईटी जांच होनी चाहिए।
जनता और सामाजिक संगठनों का कहना है कि दोषी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार, लापरवाही और जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ के तहत एफआईआर दर्ज की जाए।
इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि सरकारी तंत्र पर जनता का भरोसा भी लौटेगा।
अगर सरकार ने इस बार कठोर रुख नहीं अपनाया, तो यह संदेश जाएगा कि सत्ता केवल “प्रतीकात्मक सख़्ती” दिखा रही है।
मुख्यमंत्री की छवि और राजनीतिक असर
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने शुरुआती कार्यकाल में कई निर्णायक कदम उठाए हैं।
लेकिन छिंदवाड़ा कफ सीरप कांड जैसे संवेदनशील मुद्दे पर उनका रुख यह तय करेगा कि जनता उन्हें कठोर प्रशासक मानेगी या राजनीतिक संतुलन बनाने वाले नेता।
अगर इस मामले में सिर्फ़ सस्पेंशन तक ही कार्रवाई सीमित रही, तो विपक्ष इसे “ढोंग” बताने में देर नहीं करेगा।
वहीं अगर सीएम दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करवाते हैं, तो यह उनका राजनीतिक कद और जनता का विश्वास दोनों मजबूत करेगा।
नकली दवा माफिया पर सख़्त प्रहार की जरूरत
मध्य प्रदेश में नकली दवाओं का कारोबार कोई नया नहीं है।
समय-समय पर ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ़ ट्रांसफर या सस्पेंशन की औपचारिकताएं पूरी होती हैं।
जरूरत इस बात की है कि इस बार इसे मिसाल बनाया जाए —
ऐसे माफियाओं और अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमे, जमानत निरस्तीकरण, और संपत्ति ज़ब्ती जैसी कड़ी कार्रवाइयां हों।
जनता का भरोसा लौटाना ही असली चुनौती
छिंदवाड़ा कफ सीरप कांड ने लोगों में यह डर पैदा कर दिया है कि अगर सरकारी निगरानी में बिकने वाली दवा भी ज़हर साबित हो सकती है, तो फिर कोई सुरक्षित नहीं।
सरकार के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह जनता का विश्वास कैसे बहाल करे।
अगर मुख्यमंत्री मोहन यादव इस मामले में सख़्त कदम उठाते हैं —
जांच को पारदर्शी रखते हुए दोषियों को सज़ा दिलवाते हैं, तो जनता निश्चित रूप से सरकार के साथ खड़ी होगी।
लेकिन अगर कार्रवाई “अधूरी” रही, तो यह मामला सरकार की साख पर गहरा दाग छोड़ जाएगा।
सिर्फ़ निलंबन नहीं, न्याय की मांग
छिंदवाड़ा कफ सीरप कांड केवल एक प्रशासनिक त्रुटि नहीं बल्कि एक मानवीय त्रासदी है।
इससे कई परिवार प्रभावित हुए हैं और जनता में भय का माहौल है।
सरकार ने शुरुआत तो सख़्ती से की है, लेकिन अब जरूरत है न्याय की गूंजदार पुकार सुनने की।
केवल सस्पेंशन नहीं, बल्कि कानूनी कार्रवाई, जवाबदेही और पारदर्शिता ही इस घाव पर मरहम रख सकती है।
“क्योंकि जब जनता की जान से खिलवाड़ हो, तो सज़ा केवल निलंबन नहीं — जेल होनी चाहिए।”
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