जिले को मिली बड़ी राहत: झुकेही पहुंची नीम कोटेड यूरिया खाद की रैक, किसानों को नहीं होगी कमी , नीम कोटेड यूरिया बनाम सामान्य यूरिया: किसानों के लिए कौन है बेहतर विकल्प?
Written & Edited By : ADIL AZIZ
(जनहित की बात, पत्रकारिता के साथ)
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जिले में यूरिया खाद की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित
कटनी (05 सितम्बर) – जिले के किसानों के लिए खुशखबरी है। खेती-किसानी के इस अहम समय में अब यूरिया खाद की कोई कमी नहीं होगी। बीते 48 घंटे में जिले को कुल 1012 मीट्रिक टन नीम कोटेड यूरिया मिली है। गुरुवार को जहां 490 मीट्रिक टन खाद आई थी, वहीं शुक्रवार को 522 मीट्रिक टन यूरिया की एक और रैक झुकेही रैक पाइंट पर पहुंच चुकी है।
कृषि कार्यों में सबसे अधिक उपयोग होने वाली उर्वरक यूरिया खाद की मांग इस समय चरम पर है। समय पर उपलब्धता न होने पर किसानों को परेशानी झेलनी पड़ती है। लेकिन कलेक्टर दिलीप कुमार यादव के निरंतर प्रयासों की वजह से जिले को समय पर पर्याप्त खाद मिल रही है।
किसानों को पर्याप्त खाद उपलब्ध कराने की पहल
कलेक्टर दिलीप कुमार यादव किसानों के लिए उर्वरक उपलब्धता को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखे हुए हैं। वे लगातार वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से चर्चा कर जिले को यूरिया खाद उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर रहे हैं।
बीते दो दिनों में ही 1012 मीट्रिक टन खाद उपलब्ध होना इस बात का बड़ा उदाहरण है कि किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर प्रशासन गंभीर प्रयास कर रहा है।
कालाबाजारी और नकली खाद पर सख्ती
कलेक्टर ने साफ निर्देश दिए हैं कि जिले में खाद की कालाबाजारी, अवैध परिवहन, अवैध भंडारण, टैगिंग और नकली उर्वरक बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाए। अभी तक जिले में 6 उर्वरक विक्रेताओं के लाइसेंस निरस्त किए जा चुके हैं और 1 विक्रेता पर एफआईआर भी दर्ज की गई है।
यह सख्ती किसानों को राहत पहुंचाने और व्यवस्था को पारदर्शी बनाए रखने की दिशा में बड़ा कदम है।
वितरण व्यवस्था में पारदर्शिता
कलेक्टर ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि खाद वितरण में पूरी पारदर्शिता रखी जाए। इसके लिए ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारियों और पटवारियों की ड्यूटी भी लगाई जाएगी।
साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों और किसान संगठनों को भी वितरण व्यवस्था से जुड़ी जानकारी दी जाएगी। इसका मकसद यह है कि कोई भी किसान खाद से वंचित न रह जाए।
किसे कितना मिला यूरिया?
जिला विपणन अधिकारी अमित तिवारी ने जानकारी दी कि झुकेही रैक से आई यूरिया खाद का वितरण इस प्रकार किया गया है:
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कटनी डबल लॉक केन्द्र – 90 मीट्रिक टन
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बहोरीबंद डबल लॉक केन्द्र – 82 मीट्रिक टन
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जिला सहकारी केंद्रीय बैंक कटनी – 150 मीट्रिक टन
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सीएमएस मार्केटिंग सोसायटी कटनी – 30 मीट्रिक टन
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सीएमएस उमरियापान-ढीमरखेड़ा – 30 मीट्रिक टन
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सीएमएस रीठी – 30 मीट्रिक टन
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प्रियदर्शनी विपणन विजयराघवगढ़ – 30 मीट्रिक टन
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सीएमएस बड़वारा – 25 मीट्रिक टन
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सीएमएस बाकल – 25 मीट्रिक टन
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एमपी एग्रो कटनी – 30 मीट्रिक टन
इस तरह जिले के हर हिस्से के किसानों तक पर्याप्त मात्रा में खाद पहुंचाई जा रही है।
किसानों को शिकायत करने की सुविधा
कलेक्टर ने किसानों से अपील की है कि अगर उन्हें खाद या बीज से संबंधित कोई भी समस्या आती है, तो वे तुरंत कंट्रोल रूम को सूचना दें।
शिकायत के लिए जिला स्तरीय कंट्रोल रूम के नंबर जारी किए गए हैं:
☎️ 07622-220070
☎️ 07622-220071
यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि किसी भी किसान को परेशानी न हो और शिकायत का तुरंत समाधान किया जा सके।
किसानों की आवाज़ को मिला सहारा
जिले में लंबे समय से किसान खाद की कमी से जूझ रहे थे। कई बार दुकानों पर लंबी कतारें देखने को मिलती थीं और किसानों को पर्याप्त खाद नहीं मिल पाती थी। लेकिन अब हालात बदलते नजर आ रहे हैं।
प्रशासन की त्वरित कार्यवाही और सतर्कता से किसानों का भरोसा मजबूत हुआ है। किसान संगठनों ने भी इस पहल का स्वागत किया है।
कृषि अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा कदम
किसान किसी भी जिले की रीढ़ की हड्डी होते हैं। पर्याप्त खाद मिलने से उनकी लागत घटेगी, फसल का उत्पादन बढ़ेगा और आर्थिक मजबूती आएगी।
इस तरह नीम कोटेड यूरिया खाद की उपलब्धता न सिर्फ किसानों को राहत दे रही है बल्कि जिले की कृषि अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करेगी।
जिले में झुकेही रैक पाइंट से पहुंची नीम कोटेड यूरिया खाद किसानों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। बीते 48 घंटे में मिली 1012 मीट्रिक टन खाद ने साबित कर दिया है कि अगर प्रशासन और किसान साथ मिलकर काम करें, तो किसी भी चुनौती का हल निकाला जा सकता है।
कलेक्टर दिलीप कुमार यादव की मेहनत और टीम की सक्रियता से अब किसानों को खाद की कमी से जूझना नहीं पड़ेगा। पारदर्शिता और सख्ती के साथ चल रही यह व्यवस्था निश्चित रूप से जिले की खेती-किसानी को नई दिशा देगी।
🌾 किसानों के लिए सबसे अहम सवाल – कौन-सा खाद सही?
खेती-किसानी में उर्वरकों की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी पानी और मेहनत की। भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला उर्वरक है यूरिया (Urea)। लेकिन सरकार ने साल 2015 से यह सुनिश्चित कर दिया कि बाजार में केवल Neem Coated Urea (नीम लेपित यूरिया) ही उपलब्ध होगा।
क्योंकि, नीम लेपित यूरिया किसानों और मिट्टी दोनों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हुआ है। इस आर्टिकल में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि Neem Coated Urea और Normal Urea में क्या अंतर है, इनके फायदे-नुकसान क्या हैं और पैदावार में कितना फर्क पड़ता है।
🌿 1. Neem Coated Urea (नीम लेपित यूरिया) क्या है?
नीम कोटेड यूरिया असल में सामान्य यूरिया ही है, जिस पर नीम के तेल या अर्क की परत चढ़ा दी जाती है।
🔹 मुख्य विशेषताएं
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यूरिया के दानों पर नीम का लेप होता है।
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यह लेप धीरे-धीरे घुलता है और नाइट्रोजन का नुकसान कम करता है।
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नीम में मौजूद Azadirachtin तत्व मिट्टी के कीटों व नेमाटोड्स को नियंत्रित करता है।
✅ फायदे
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नाइट्रोजन की बर्बादी कम (30% तक बचत)।
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फसल को लंबे समय तक पोषण।
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कीट और रोग नियंत्रण में सहायक।
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मिट्टी की सेहत बेहतर होती है।
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किसानों को ज़्यादा पैदावार।
❌ नुकसान
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केवल यूरिया पर लागू, DAP या Potash पर नहीं।
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कीमत थोड़ी अधिक, लेकिन उत्पादन भी ज्यादा।
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असर धीरे-धीरे दिखता है, तुरंत तेजी नहीं आती।
🌱 2. Normal Urea (सामान्य यूरिया)
सामान्य यूरिया बिना किसी लेप के सीधा-सीधा नाइट्रोजन सप्लाई करता है।
✅ फायदे
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सस्ता और तुरंत असर दिखाने वाला।
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सभी फसलों में इस्तेमाल योग्य।
❌ नुकसान
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नाइट्रोजन की भारी हानि (40–50% तक हवा और पानी से उड़ जाती है)।
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बार-बार डालना पड़ता है।
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मिट्टी की गुणवत्ता खराब होती है।
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कीट और रोगों का खतरा बढ़ता है।
📊 संक्षेप तुलना
| बिंदु | Neem Coated Urea | Normal Urea |
|---|---|---|
| नाइट्रोजन की उपलब्धता | धीरे-धीरे, लंबे समय तक | तुरंत, लेकिन हानि ज्यादा |
| कीट/रोग नियंत्रण | कुछ हद तक करता है | नहीं करता |
| पैदावार | स्थिर और बेहतर | शुरुआत में तेज, बाद में घटती |
| मिट्टी की सेहत | सुधार होती है | खराब होती है |
| कीमत | थोड़ी ज्यादा | सस्ता |
🌍 भारत और विश्व में नीम कोटेड यूरिया
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भारत सरकार ने 2008–09 में इसे प्रयोग के तौर पर शुरू किया था।
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2015 से इसे 100% अनिवार्य कर दिया गया। अब भारत में केवल Neem Coated Urea ही बनता है।
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विश्व स्तर पर भी भारत की यह पहल सराही गई और FAO (Food & Agriculture Organization) ने इसे सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के लिए अनुशंसित किया।
📈 विभिन्न फसलों में नीम कोटेड यूरिया की खपत (1 एकड़ खेत के लिए औसत)
| फसल | जरूरत (किलो) | कब देना चाहिए |
|---|---|---|
| धान (Rice) | 40–50 kg | रोपाई के 7–10 दिन बाद, टिलरिंग और फूल आने पर |
| गेहूँ | 35–40 kg | बुवाई के 20–25 दिन बाद और गाभ फूलने पर |
| सोयाबीन | 25–30 kg | बुवाई के 20–25 दिन बाद |
| गन्ना | 70–80 kg | बुवाई के बाद 3–4 बार, हर growth stage पर |
| मक्का | 30–35 kg | 20–25 दिन बाद और फूल आने से पहले |
👉 सही डोज़ मिट्टी की उर्वरता और Soil Test रिपोर्ट पर निर्भर करती है।
🌾 पैदावार तुलना: Neem Coated Urea vs Normal Urea
✅ रिसर्च के अनुसार
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Neem Coated Urea से फसल उत्पादन 8–15% तक बढ़ जाता है।
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नाइट्रोजन की बर्बादी लगभग 30% तक कम हो जाती है।
| फसल | Normal Urea पैदावार | Neem Coated Urea पैदावार | अंतर |
|---|---|---|---|
| धान | 22–24 क्विंटल/एकड़ | 25–27 क्विंटल/एकड़ | +10–12% |
| गेहूँ | 18–20 क्विंटल/एकड़ | 20–22 क्विंटल/एकड़ | +8–10% |
| सोयाबीन | 10–11 क्विंटल/एकड़ | 11–12.5 क्विंटल/एकड़ | +8–12% |
| गन्ना | 350–400 क्विंटल/एकड़ | 400–440 क्विंटल/एकड़ | +10% |
| मक्का | 18–19 क्विंटल/एकड़ | 20–21 क्विंटल/एकड़ | +8–10% |
✅ किसानों के लिए अतिरिक्त लाभ
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कम बार खाद डालनी पड़ती है।
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खर्च में बचत और उत्पादन ज्यादा।
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कीट-रोग का खतरा कम।
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पर्यावरण के लिए हितकारी।
📌 निष्कर्ष
Neem Coated Urea किसानों के लिए सिर्फ खाद नहीं, बल्कि मिट्टी की सेहत और खेती की स्थिरता का साधन है। Normal Urea भले ही सस्ता और तुरंत असर देने वाला हो, लेकिन लंबे समय में यह नुकसानदायक साबित होता है।
भारत सरकार का यह कदम कि अब केवल नीम लेपित यूरिया ही उपलब्ध होगा, किसानों को 10% तक अधिक पैदावार, 30% तक कम नाइट्रोजन हानि और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में मदद कर रहा है।
👉 इसलिए किसानों को सलाह है कि Neem Coated Urea का ही इस्तेमाल करें, ताकि मिट्टी भी बचे और उपज भी बढ़े।
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