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बस में प्रसव पीड़ा, आशा सुपरवाइजर बनी देवदूत: सूझबूझ से बचाई गर्भवती और शिशु की जान

 



कटनी (04 सितंबर) – जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं जब इंसानियत और कर्त्तव्य भावना की असली परीक्षा होती है। ऐसा ही उदाहरण सामने आया जब बमोरी बड़वारा निवासी गर्भवती महिला प्रिया कोल को बस यात्रा के दौरान प्रसव पीड़ा शुरू हुई। इस गंभीर स्थिति में उसी बस में यात्रा कर रहीं आशा सुपरवाइजर प्रभा तिवारी ने न सिर्फ तुरंत समझदारी दिखाई बल्कि अपने अनुभव और संवेदनशीलता से गर्भवती का जीवन बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


घटना का विवरण

बमोरी बड़वारा की 27 वर्षीय प्रिया कोल अपने पति अमित कोल के साथ बस से कैमोर जा रही थीं। इसी दौरान अचानक उन्हें तेज प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। महिला दर्द से कराह रही थी और स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही थी। उसी बस में कन्हवारा अस्पताल की आशा सुपरवाइजर प्रभा तिवारी भी यात्रा कर रही थीं, जो बैठक में शामिल होने जा रही थीं।

बस में मौजूद लोगों ने जब देखा कि गर्भवती की हालत बिगड़ रही है तो सभी ने उसके पति से आग्रह किया कि उसे नजदीकी अस्पताल में भर्ती करा दिया जाए। लेकिन पति अमित इस बात पर अड़ा रहा कि वह अपनी पत्नी को विजयराघवगढ़ अस्पताल ही ले जाएगा।


आशा सुपरवाइजर की समझदारी

स्थिति को गंभीर समझते हुए प्रभा तिवारी ने तुरंत निर्णय लिया। उन्होंने पति और परिजनों को समझाया कि विजयराघवगढ़ तक की दूरी लंबी है और रास्ते में किसी भी समय गर्भवती और शिशु की जान को खतरा हो सकता है।

उनकी लगातार समझाइश और प्रयासों से अंततः परिजन सहमत हो गए और गर्भवती को नजदीकी कन्हवारा अस्पताल में भर्ती कराया गया।


सुरक्षित प्रसव और नई उम्मीद

अस्पताल पहुंचने के केवल 10 मिनट के भीतर ही गर्भवती का सुरक्षित संस्थागत प्रसव हो गया। 2.700 किलोग्राम वजन के स्वस्थ शिशु ने जन्म लिया और माँ भी पूर्णतः स्वस्थ रहीं।

यदि प्रसव बस या रास्ते में होता, तो माँ और शिशु दोनों की जान पर गंभीर खतरा मंडरा सकता था। प्रभा तिवारी की तत्परता और अनुभव ने इस संकट की घड़ी को खुशियों के पल में बदल दिया।





संवेदनशीलता और कर्त्तव्यपरायणता की मिसाल

यह घटना सिर्फ एक प्रसव की सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह बताती है कि समय पर लिया गया सही निर्णय कितनी जिंदगियां बचा सकता है। प्रभा तिवारी ने मानवीयता और कर्त्तव्यपरायणता का जो उदाहरण पेश किया है, वह समाज के लिए प्रेरणास्रोत है।

उनकी इस भूमिका ने यह भी साबित कर दिया कि आशा कार्यकर्ता सिर्फ स्वास्थ्य योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने वाली नहीं हैं, बल्कि संकट की घड़ी में वे देवदूत बनकर सामने आती हैं।


मातृ और शिशु मृत्यु दर कम करने की दिशा में प्रयास

भारत सरकार और राज्य सरकारें लगातार मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए काम कर रही हैं। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि कई बार प्रसव के दौरान लापरवाही या समय पर उपचार न मिलने के कारण जानें चली जाती हैं।

ऐसे में आशा कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्य कर्मचारियों की सतर्कता ही मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुधार में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है।


इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल

प्रभा तिवारी की इस सूझबूझ ने यह संदेश दिया है कि इंसानियत सबसे ऊपर है। अगर उस समय उन्होंने चुप्पी साध ली होती तो शायद स्थिति भयावह हो सकती थी। लेकिन उनकी कोशिशों ने एक माँ और बच्चे को नया जीवन दिया।


समाज के लिए सबक

यह घटना पूरे समाज के लिए सीख है कि कठिन परिस्थितियों में समझदारी और तत्परता ही जीवन बचाने का सबसे बड़ा हथियार है। हमें हर स्थिति में संवेदनशील बने रहने और सही समय पर सही कदम उठाने की प्रेरणा लेनी चाहिए।



कटनी की यह घटना केवल एक समाचार नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, साहस और कर्त्तव्यपरायणता की अद्भुत मिसाल है। आशा सुपरवाइजर प्रभा तिवारी ने दिखा दिया कि जब इंसान अपने ज्ञान और अनुभव का सही समय पर उपयोग करता है, तो कई जिंदगियां सुरक्षित की जा सकती हैं।

ऐसे उदाहरण समाज को यह सिखाते हैं कि जनहित की बात सिर्फ नारे नहीं, बल्कि कर्मों से साबित होती है।



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Written & Edited By : ADIL AZIZ
(जनहित की बात, पत्रकारिता के साथ)
Email : publicnewsviews1@gmail.com


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