कटनी में नशे का खुला व्यापार, प्रशासन मौन क्यों? , एडवोकेट मौसुफ बिट्टू बोले - बताता हूँ कहां बिकता है गांजा–स्मैक
लेखक एवं संपादक: आदिल अज़ीज़

#नशे से दूरी है जरूरी, लेकिन कार्रवाई उससे भी ज़रूरी
कटनी, मध्य प्रदेश – नशे के विरुद्ध चल रहे जागरूकता अभियानों के बीच एक साहसिक और बेबाक बयान सामने आया है। नगर पालिक निगम के वरिष्ठ पार्षद एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष एडवोकेट मौसुफ बिट्टू ने खुलकर कहा है कि अगर प्रशासन नशे के ठिकानों से अंजान है, तो वे खुद बताएंगे कि कटनी में कहां-कहां गांजा और स्मैक बिक रही है।
यह बयान तब आया है जब शहर में “नशे से दूरी है जरूरी” नामक अभियान के तहत लगातार रैलियाँ, पोस्टर, रील्स और सोशल मीडिया कैंपेन किए जा रहे हैं। लेकिन एडवोकेट बिट्टू का कहना है कि यह सब दिखावा ज़्यादा और जमीनी स्तर पर कार्रवाई शून्य है।
"सिर्फ जागरूकता नहीं, कार्रवाई भी ज़रूरी"
एडवोकेट मौसुफ बिट्टू ने साफ तौर पर कहा कि –
"यदि प्रशासन को यह नहीं मालूम कि कहां नशे का कारोबार हो रहा है, तो वह मुझसे संपर्क करे। मैं नाम और स्थान दोनों बताने को तैयार हूं।"
उनका कहना है कि अब केवल पोस्टर और नारों से काम नहीं चलेगा, बल्कि सख्त कार्रवाई की ज़रूरत है। अवैध नशा व्यापार करने वालों पर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और ऐसे अड्डों को तुरंत बंद कराया जाना चाहिए।
कटनी में नशा: एक बढ़ती हुई सामाजिक बीमारी
कटनी जैसे शहर में जहां पर युवा प्रतिभाएं भविष्य निर्माण के रास्ते पर चल रही हैं, वहीं दूसरी तरफ बहुत सारे युवा नशे की गिरफ्त में भी फँसते जा रहे हैं। गांजा, स्मैक, टेबलेट्स और एल्कोहल – इन सबकी अवैध उपलब्धता इतनी आसान हो गई है कि अब यह एक सामाजिक संकट बन चुका है।
जनप्रतिनिधि की पहल: सिर्फ आरोप नहीं, समाधान भी
एडवोकेट बिट्टू का बयान केवल एक विरोध नहीं बल्कि समाधान का भी प्रस्ताव है। उनका मानना है कि अगर सही इरादे से पुलिस और प्रशासन कार्रवाई करें तो शहर से नशा काफी हद तक खत्म हो सकता है।
उन्होंने कहा –
"मैं केवल आलोचना नहीं कर रहा, मैं प्रशासन को मदद देने को भी तैयार हूँ। मुझे जानकारी है कहां-कहां अवैध नशा बिकता है, मैं बताने को तैयार हूँ, बशर्ते प्रशासन कार्यवाही करे।"
प्रशासन की निष्क्रियता या सीमाएं?
हाल के वर्षों में पुलिस द्वारा कुछ कार्रवाइयाँ अवश्य की गई हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि नशे के ठिकाने अब भी खुलेआम चल रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि –
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क्या प्रशासन इन ठिकानों से वाकिफ नहीं है?
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क्या कोई राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव है?
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या फिर यह महज़ लापरवाही है?
एडवोकेट बिट्टू जैसे जनप्रतिनिधि जब खुले मंच पर नशे के स्थानों की जानकारी देने की बात करते हैं, तो यह प्रशासन के लिए आत्ममंथन का समय है।
"नशे से दूरी" अभियान: सिर्फ कैमरे के सामने?
आजकल सोशल मीडिया के दौर में "अभियान" का मतलब हो गया है कैमरे के सामने रैली निकालना, स्लोगन लिखना और रील बनाना। लेकिन एडवोकेट बिट्टू का कहना है कि जब तक ज़मीन पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक यह सब सिर्फ दिखावा है।
"कार्यक्रम तो हो रहे हैं लेकिन उनके समानांतर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। जब तक अपराधियों पर बड़ी कार्रवाई नहीं होती, समाज तक कोई मजबूत संदेश नहीं पहुंचेगा।"
जनता का भी फर्ज़ बनता है
एडवोकेट बिट्टू की इस मुहिम में आम जनता की भी ज़िम्मेदारी बनती है। नशे के खिलाफ अगर कोई बोलता है, तो समाज को उसका समर्थन करना चाहिए। नशे के ठिकानों की सूचना गुप्त रूप से पुलिस को दी जा सकती है। क्योंकि अगर हम चुप हैं, तो हम भी अप्रत्यक्ष रूप से इस सामाजिक बुराई को बढ़ावा दे रहे हैं।
क्या अब प्रशासन जागेगा?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन एडवोकेट मौसुफ बिट्टू की इस चुनौती का क्या जवाब देता है।
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क्या पुलिस उनसे संपर्क करेगी?
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क्या वास्तविक कार्रवाई होगी?
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या फिर यह बयान भी अन्य बयानों की तरह मीडिया तक सीमित रह जाएगा?
यदि वाकई नशे पर लगाम कसनी है तो जागरूकता और कार्रवाई दोनों साथ-साथ चलनी चाहिए।
दिखावे से नहीं, दृढ़ इच्छाशक्ति से बदलता है समाज
एडवोकेट मौसुफ बिट्टू का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक स्टेटमेंट नहीं बल्कि समाज को आईना दिखाने वाला है। नशे से अगर अगली पीढ़ी को बचाना है, तो पोस्टर, रैली और फोटो से आगे बढ़ते हुए वास्तविक कार्रवाई करनी होगी। और इस प्रक्रिया में हर नागरिक, हर जनप्रतिनिधि और हर पुलिस अधिकारी की भागीदारी ज़रूरी है।
लेखक एवं संपादक: आदिल अज़ीज़
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