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कटनी में मानवता शर्मसार: , नगर निगम पर उठे सवाल


लेखक एवं संपादक: आदिल अज़ीज़


🟥 मानवता को चूर करने वालों को दंडित किया जाए

नगर निगम की संवेदनहीनता उजागर: लावारिस शव का कचरा ट्रैक्टर से किया अंतिम सफर

कटनी, मध्यप्रदेश – एक सभ्य समाज में मृत व्यक्ति को भी अंतिम संस्कार का सम्मान मिलना चाहिए, लेकिन कटनी नगर निगम की शर्मनाक लापरवाही ने इस संवेदनशील अवधारणा को तार-तार कर दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो ने प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता का चेहरा उजागर कर दिया है।

वीडियो में देखा गया कि नगर निगम के कचरा उठाने वाले ट्रैक्टर में एक लावारिस शव को बुरी तरह घसीटते हुए ट्रॉली में डाला जा रहा है — जैसे वह कोई कचरे का ढेर हो। यह दृश्य न केवल अमानवीय है, बल्कि समाज और प्रशासन के संवेदनहीन हो जाने की गवाही देता है।




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🔍 क्या यह शव के साथ 'अंतिम विदाई' है या 'मानवता की मौत'?

किसी व्यक्ति की मौत के बाद समाज और प्रशासन का पहला कर्तव्य होता है कि उसका सम्मानजनक अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया जाए। लेकिन जब जिम्मेदार संस्थाएं ही उस शव को कचरे की तरह उठाने लगें, तो सवाल उठते हैं — क्या इंसानियत इतनी सस्ती हो गई है?

लोगों का कहना है कि भले ही वह व्यक्ति लावारिस हो, पर वह किसी का बेटा, भाई या पिता रहा होगा। उसका इस तरह से अपमान करना केवल उसके नहीं, पूरे समाज की आत्मा को ठेस पहुँचाता है।




⚠️ "चयनित शव सेवा" और "अनदेखा बेसहारा वर्ग"

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, नगर निगम के अंतर्गत एक शव वाहन सेवा महापौर के पति द्वारा संचालित की जाती है। यह सेवा, कथित तौर पर, सिर्फ उन ‘चयनित’ लोगों को दी जाती है जो नगर निगम या सत्ताधारी पक्ष के करीबी माने जाते हैं।

लावारिस, गरीब, बेसहारा या सड़कों पर मरने वाले व्यक्तियों के लिए यह सुविधा या तो उपलब्ध नहीं होती या उन्हें जानबूझकर इससे वंचित रखा जाता है। यही भेदभाव कटनी में प्रशासनिक संवेदनहीनता की असली तस्वीर पेश करता है।


😠 जनता में आक्रोश, सामाजिक संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया

घटना के बाद स्थानीय सामाजिक संगठनों, नागरिकों और विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कार्यवाहक अध्यक्ष, शहर जिला कांग्रेस कमेटी, राजा जगवानी ने इस कृत्य को मानवता के खिलाफ बताते हुए कहा,
"जो लोग मानवता को शर्मसार करते हैं, उन्हें तत्काल दंडित किया जाना चाहिए। नगर निगम का यह रवैया अस्वीकार्य है।"

कई समाजसेवी संगठनों ने जिला प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की है और दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की बात कही है।


📜 प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल

यह घटना नगर निगम की कार्यशैली पर भी बड़ा सवाल उठाती है:

  • क्या नगर निगम के पास लावारिस शवों के लिए कोई मानक प्रक्रिया नहीं है?

  • क्या नगर निगम कर्मचारियों को इस तरह से शव उठाने की अनुमति दी गई है?

  • क्या ऐसी घटनाओं के लिए जवाबदेही तय की जाएगी या हमेशा की तरह फाइलों में दबा दी जाएगी?


🔎 मानवाधिकार और संवैधानिक मूल्य कहाँ गए?

भारत के संविधान में हर नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन और मृत्यु का अधिकार प्राप्त है। ऐसे में किसी व्यक्ति का शव ट्रैक्टर में कचरे की तरह डालना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।

यह घटना हमें बताती है कि प्रशासनिक तंत्र को संवेदनशील बनाना अब केवल आवश्यकता नहीं, बल्कि प्राथमिकता होनी चाहिए।


🔄 समाधान क्या है?

  1. स्थायी शव वाहन सेवा की व्यवस्था हो – बिना भेदभाव के हर व्यक्ति के लिए।

  2. नगर निगम कर्मचारियों को संवेदनशीलता का प्रशिक्षण मिले।

  3. घटनाओं की वीडियो निगरानी और ऑडिटिंग हो।

  4. संवेदनहीनता दिखाने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो।


🧾  इंसानियत की यह हार अब बर्दाश्त नहीं

कटनी की यह घटना केवल एक शव की दुर्गति नहीं है, यह पूरे प्रशासनिक और सामाजिक सिस्टम की असफलता की कहानी है। किसी भी समाज की परिपक्वता इस बात से तय होती है कि वह अपने सबसे कमजोर वर्ग — लावारिस, गरीब, बेसहारा — के साथ कैसा व्यवहार करता है।

जब एक लाश को सम्मान तक न मिले, तो यह सोचने का समय है कि ज़िंदा लोगों को क्या मिल रहा होगा।

अब वक्त आ गया है कि इस संवेदनहीनता पर लगाम कसी जाए और दोषियों को दंड दिया जाए — तभी हम एक मानवतावादी समाज की ओर बढ़ पाएंगे।


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