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मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़ा झटका: संजय पाठक पर जांच, क्या भाजपा के भीतर ही शुरू हो चुकी है सियासी जंग?

 





लेखक एवं संपादक: आदिल अज़ीज़

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मध्य प्रदेश में इन दिनों एक राजनीतिक भूचाल मचा हुआ है, खासकर भाजपा के भीतर। विजयराघवगढ़ से विधायक एवं पूर्व मंत्री संजय पाठक, जिन्हें राज्य का एक सबसे अमीर विधायक माना जाता है, अचानक कई गंभीर जांचों और विवादों के केंद्र में आ गए हैं। खनन से लेकर सहारा जमीन सौदे तक, उनकी और परिवार की कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई तेज हो गई है।


अवैध खनन: ₹520 करोड़ की रिकवरी का आदेश

  • सरकार ने तीन खनन कंपनियों—निर्मला मिनरल्स, आनंद माइनिंग कॉर्पोरेशन और पेसिफिक एक्सपोर्ट—जो संजय पाठक से जुड़ी हैं, उन पर ₹520 करोड़ की रिकवरी का आदेश जारी किया है Patrika News+3Oneindia Hindi+3HumSamvet+3Instagram+8Bhaskar English+8Oneindia Hindi+8

  • इसमें ₹440 करोड़ की राशि अवैध आयरन अयस्क खनन के लिए और ₹80 करोड़ से अधिक जीएसटी चोरी के जुर्माने के रूप में वसूली का प्रस्ताव है swadesh+3Bansal news+3Oneindia Hindi+3

  • जांच में पता चला कि कंपनियों ने स्वीकृत माइनिंग प्लान और पर्यावरणीय मंजूरी से बाहर जाकर लाखों टन अतिरिक्त खनन किया था swadesh+3Oneindia Hindi+3Bansal news+3

  • जांच टीम ने इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस (IBM) के डेटा और सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया, साथ ही दफ्तरों से कई अहम फाइलें गायब मिलीं हैं agritpatrika.com+4Bansal news+4HumSamvet+4


सहारा जमीन घोटाला: FIR और ₹72.82 करोड़ की गबन

  • Sahara समूह की 310 एकड़ जमीन जिस पर अत्यधिक सस्ते दाम में लेन-देन हुआ, उसकी कीमत लगभग ₹1,000 करोड़ आंकी गई, लेकिन उसे केवल ₹90 करोड़ में बेचा गया Free Press Journal+3The New Indian Express+3Patrika News+3

  • EOW ने इस मामले में कुल ₹72.82 करोड़ गबन का मामला दर्ज किया है X (formerly Twitter)+11Patrika News+11Free Press Journal+11

  • FIR Sahara समूह के अधिकारियों—जैसे सीमांतो रॉय (सहारा प्रमुख सुब्रता रॉय के बेटे), JB रॉय, OP श्रीवास्तव—के खिलाफ दर्ज की गई है, जो संपत्ति के बिक्री-वितरण में सीधे जिम्मेदार थे Dainik Bhaskar+2Patrika News+2Oneindia Hindi+2

  • विवादास्पद बात यह है कि जमीन पाठक परिवार की होल्डिंग कंपनियों—जिसमें उनकी मां निर्मला पाठक व बेटे यश पाठक के हिस्सेदारी वाले—के जरिए खरीदी गई थी Patrika News+1Oneindia Hindi+1





भाजपा विधायक संजय पाठक पर 520 करोड़ की रिकवरी और सहारा भूमि घोटाले में ईओडब्ल्यू की FIR ने मध्यप्रदेश की राजनीति को हिला दिया है। जानिए, क्यों इस कार्रवाई को शिवराज सिंह चौहान को घेरने की रणनीति माना जा रहा है।




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मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल: संजय पाठक पर ईओडब्ल्यू का शिकंजा



मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों हलचल तेज़ है। भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता और विजयराघवगढ़ विधायक संजय पाठक पर एक के बाद एक जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा है। कभी शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाने वाले इस नेता पर अब ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) द्वारा गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है।






पहले 520 करोड़ की खनन रिकवरी और अब सहारा समूह की बहुचर्चित जमीन डील को लेकर संजय पाठक के परिवार की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या यह एक सामान्य जांच है या भाजपा के भीतर ही चल रही शक्ति संघर्ष का परिणाम?

सहारा जमीन विवाद: किसकी ज़मीन, किसने खरीदी?



हाल ही में सामने आई रिपोर्टों के अनुसार, सहारा समूह की कुछ बेशकीमती ज़मीन, जिसे संजय पाठक के परिवार से जुड़े संस्थानों ने खरीदा था, अब विवादों के घेरे में है। ईओडब्ल्यू ने न सिर्फ सहारा समूह के उच्च अधिकारियों पर, बल्कि जमीन सौदे से जुड़े अन्य पक्षों की भी जांच शुरू कर दी है।

प्रश्न यह उठता है कि जब यह सौदा हुआ, तब क्या वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया था? क्या यह सौदा "बेनामी" या "अवैध" श्रेणी में आता है? या फिर यह सिर्फ राजनीतिक दबाव की वजह से उठाया गया कदम है

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शिवराज के करीबी, अब निशाने पर क्यों?

संजय पाठक का नाम भाजपा में एक 'बिजनेस-फ्रेंडली' चेहरा के रूप में स्थापित रहा है। वे पहले कांग्रेस में थे और बाद में भाजपा में शामिल हुए। भाजपा में आने के बाद उन्होंने न सिर्फ अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत की बल्कि अपनी खनन कंपनियों के माध्यम से आर्थिक रूप से भी ताकत हासिल की।



शिवराज सिंह चौहान के अत्यंत करीबी माने जाने वाले पाठक के खिलाफ अचानक हुई यह कार्रवाइयाँ सवाल खड़े करती हैं। क्या यह सिर्फ संयोग है या भाजपा के भीतर चल रही अदृश्य लड़ाई का परिणाम है?


क्या निशाने पर हैं 'मामा'?

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि यह सब कुछ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। दरअसल, हाल ही में संघ के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा यह विचार प्रस्तुत किया गया कि 75 पार नेताओं को पद छोड़कर युवाओं को मौका देना चाहिए

कहा जा रहा है कि शिवराज को राष्ट्रीय राजनीति में संभावित भूमिका देने की चर्चा के बीच उनके समर्थकों को टारगेट किया जा रहा है ताकि उनकी शक्ति और प्रभाव को कमजोर किया जा सके। संजय पाठक इस रणनीति में पहला मोहरा साबित हो सकते हैं।


मीडिया में वायरल हुई शिवराज की 'नोटशीट'

कटाक्ष की बात यह है कि मध्यप्रदेश के मीडिया गलियारों में इन दिनों एक पुरानी नोटशीट वायरल हो रही है, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद संजय पाठक की खदानों पर कार्रवाई का आदेश जारी किया था।

लेकिन बाद में जब पाठक भाजपा में आए, तो उन्हीं खदानों को वैध घोषित कर दिया गया। अब इस 'नोटशीट' के बाहर आने को भी एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है, ताकि शिवराज की 'निष्पक्षता' पर सवाल उठाया जा सके।


भाजपा की "कांग्रेसियत"?

राजनीतिक विश्लेषक अब इस पूरे घटनाक्रम को यह कहते हुए देख रहे हैं कि भाजपा अब कांग्रेस की राह पर चल रही है, जहां अपने ही नेताओं को निपटाने की परंपरा रही है।
एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:
"यह कांग्रेस जैसी स्थिति हो गई है, जहां पार्टी के अंदर ही टांग खिंचाई होती है। पहले बाहर के लोग हमला करते थे, अब अपने ही कर रहे हैं।"


दोषी या निर्दोष? फैसला समय करेगा

संजय पाठक और उनके परिवार की कंपनियां दोषी हैं या नहीं, यह तो आने वाली जांच और न्यायिक प्रक्रिया तय करेगी। लेकिन जिस तरह से यह घटनाक्रम सामने आ रहा है, वह यह ज़रूर संकेत देता है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में कुछ बड़ा खिचड़ी पक रही है।


निष्कर्ष

इस समय आरएसएस शिवराज सिंह चौहान को  भाजपा का  राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की तैयारी में हैं और आरएसएस उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री बनाना चाहता है। संभवतः इसी कारण संजय पाठक के बहाने अब "मामा" को घेरने की रणनीति तैयार हो रही है, जिससे भाजपा की अंदरूनी राजनीति गरमा गई है।

संजय पाठक पर छापेमारी, रिकवरी और अब एफआईआर जैसी कार्रवाइयाँ सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी प्रतीत हो रही हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि भाजपा के अंदरूनी समीकरण बदल रहे हैं, सत्ता के केंद्र में बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है।

अगर संजय पाठक जैसे ताकतवर नेता को घेरने की कोशिश हो रही है, तो इससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा की राजनीति अब दिल्ली केंद्रित नेतृत्व की ओर तेजी से बढ़ रही है, जिसमें पुराने चेहरों को पीछे हटने का संकेत दिया जा रहा है।

आने वाले समय में यह देखना रोचक होगा कि क्या संजय पाठक इन आरोपों से बाहर निकल पाते हैं, या फिर यह घटनाक्रम उनके राजनीतिक करियर को नया मोड़ देता है।



क्या है पूरा नार्मल गेम?—विश्लेषण

  1. व्हिसलब्लोअर की रिपोर्टिंग
    जनवरी 2025 में आशुतोष (मनु) दीक्षित ने EOW में अवैध खनन और जीएसटी चोरी की शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर अप्रैल में राज्य खनिज विभाग सहित एक विशेष जांच टीम बनी swadesh+3Oneindia Hindi+3HumSamvet+3

  2. प्रक्रिया व्तर्कन
    जांच समिति ने रिपोर्ट सौंपते हुए इस निष्कर्ष पर कहा कि आईबीएम, सैटेलाइट इमेजिंग व डॉक्यूमेंटेशन से स्पष्ट हुआ कि नियत सीमा से अधिक खनन किया गया और जीएसटी में चूक हुई है।

  3. सरकार की कार्रवाई
    ₹520 करोड़ की रिकवरी नोटिस जारी, fail नहीं करने पर संपत्ति जब्ती, खदानों को सील करने व कानूनी कार्रवाई जैसे कदम उठाने की चेतावनी जारी की गई agritpatrika.com+3Oneindia Hindi+3HumSamvet+3

  4. Sahara जमीन सौदा
    मामलों में हवाला ट्रांसफर, जमीन सस्ते दामों में बेचने और राशि को SEBI‑Sahara Refund खाते में न डालना—सभी सुप्रीम कोर्ट आदेशों और नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है Patrika NewsThe New Indian Express+1Free Press Journal+1


भविष्य क्या संकेत देता है?

  • राजनीतिक दांव-पेंच बढ़ेंगे: क्या भाजपा नेतृत्व इस मामले में खुद को बचाएगा, या कांग्रेस‑सपा इस पर सवाल खड़े करेंगे?

  • जांच की गहराई: फिलहाल केवल अतिरिक्त खनन और जीएसटी तक ही जांच हुई है; अन्य आरोप जैसे वन क्षेत्र में खनन, फॉरेस्ट रॉयल्टी गड़बड़ी आदि अभी शेष हैं—जो कुल राशि को कई गुना बढ़ा सकते हैं HumSamvet+1Bansal news+1



FAQs: सामान्य सवाल और जवाब

प्रश्नउत्तर
₹520 करोड़ किसके लिए हैं?ये राशि तीन खनन कंपनियों से अवैध खनन (₹440 cr) तथा GST चोरी (₹80 cr) के तहत वसूली जाएगी
Sahara जमीन सौदे की क्या जाँच हुई?310 एकड़ जमीन ₹1,000 करोड़ के estimated मूल्य पर केवल ₹90 करोड़ में बेची—FIR में ₹72.82 cr गबन दर्ज
कौन शिकायतकर्ता है?आशुतोष (मनु) दीक्षित, जिन्होंने खनिज एवं भ्रष्टाचार की शिकायत EOW में की
क्या शिवराज या भाजपा नेता इससे प्रभावित होंगे?राजनीतिक हलचल बढ़ने की संभावना, विपक्ष इसे संघ‑बड़े नेताओं तक जोड़कर देख रहा है

निष्कर्ष और निष्पक्ष विचार

संजय पाठक पर कार्रवाई राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील समय में हो रही है। चाहे वह शिवराज चौहान के करीबी हों या भाजपा के सत्ता-संघ के पाले में हों, लेकिन पर्दे के पीछे सत्ता-सम्बंधित खेल और राज्य की कानून व्यवस्था की कारस्तानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अगर आगे न्यायालय-स्तरीय परिणाम आए, तो यह मामला न केवल एक विधायक की प्रतिष्ठा बल्कि मध्य प्रदेश के राजनीतिक-सामाजिक ढांचे का फैसला भी बन सकता है।


Sources: EOW Reports, Internal BJP Leaks, Media Coverage, Political Analysis

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