सरकार की मदद लेकर मेहनत और लगन से आत्मनिर्भरता की मिसाल बनीं माया विश्वकर्मा
written & edited by : ADIL AZIZ
8 नवंबर - संघर्ष और आत्मनिर्भरता की प्रेरणादायक कहानी मध्यप्रदेश के सागर जिले के रहली ब्लॉक के एक छोटे से गांव धनगुंवा से सामने आई है। यहां की निवासी माया विश्वकर्मा, गरीबी और कठिनाईयों से लड़ते हुए आत्मनिर्भरता की एक अनूठी मिसाल बन गई हैं। माया का जीवन एक समय आर्थिक तंगी और मुश्किलों से भरा था, जहां उन्हें और उनके पति को अपनी आजीविका के लिए रोजाना मेहनत-मजदूरी करनी पड़ती थी। परंतु माया ने इन परिस्थितियों में हार मानने के बजाय, सरकार की ओर से मिलने वाली मदद का सहारा लेकर खुद का भविष्य संवारने का निश्चय किया।
आत्मनिर्भरता की राह
माया ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित महिला समूह के बारे में सुना। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें रोजगार शुरू करने के लिए सहायता देना है, ताकि वे अपनी आजीविका स्वंय संवार सकें। इस योजना के बारे में जानकर माया को अपने जीवन को बदलने की उम्मीद की किरण दिखाई दी। माया ने इस योजना के अंतर्गत महिला समूह में शामिल होने का निर्णय लिया और इस समूह के माध्यम से बैंक से ऋण प्राप्त किया।
एक छोटी दुकान से बड़ी उपलब्धि तक का सफर
माया ने ऋण राशि का उपयोग कर अपने गांव में एक छोटी सी मनिहारी की दुकान खोली। शुरुआत में दुकान बहुत साधारण थी और आमदनी सीमित थी, लेकिन माया ने इस काम को पूरी ईमानदारी और मेहनत से करना शुरू किया। उनके इस समर्पण ने जल्द ही रंग दिखाना शुरू किया और उनकी दुकान से प्रतिदिन 500-600 रुपये की आमदनी होने लगी। जैसे-जैसे उनका आत्मविश्वास बढ़ा, माया ने अपने व्यवसाय को और विस्तार देने का निश्चय किया।
कुछ समय बाद उन्होंने अपनी दुकान में किराना सामान और एक फोटो कॉपियर मशीन भी रख ली, जिससे उनकी आय में और इजाफा हुआ। इस प्रकार उनकी आमदनी लगभग दोगुनी हो गई और उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आने लगा। माया के जीवन में अब आर्थिक स्थिरता आने लगी थी और उन्होंने अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाया, ताकि उनका भविष्य उज्ज्वल हो सके।
आत्मनिर्भरता के नये आयाम
माया ने यहां रुकने का नाम नहीं लिया। अपने सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने आगे और मेहनत की। उन्होंने अपने घर को पक्का बनवाया और एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान भी शुरू कर दी। इसके साथ ही, जब उनके पास थोड़ी और पूंजी जमा हो गई, तो उन्होंने एक स्कूल मैजिक वाहन भी खरीद लिया। यह उनके परिवार के लिए आय का एक और स्रोत बन गया और अब माया का परिवार पहले से कहीं अधिक खुशहाल और सुरक्षित जीवन जी रहा है।
ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा
आज माया को उनके गांव में एक आत्मनिर्भर महिला के रूप में पहचाना जाता है और वे अपने गांव की महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हैं। माया की यह सफलता न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम है, बल्कि यह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी सरकारी योजनाओं की प्रभावशीलता का भी प्रमाण है। यह योजना, जो महिलाओं और गरीब परिवारों को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से चलाई जा रही है, माया विश्वकर्मा जैसे लाखों परिवारों के जीवन को बदलने में सहायक सिद्ध हो रही है।
माया की सीख: संघर्ष में भी न हारें
माया का मानना है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, हमें धैर्य और साहस के साथ उनका सामना करना चाहिए। उनके अनुसार, "जिंदगी जब दर्द दे, तो बड़ी ही खामोशी से पी जाना चाहिए, और जब गुल दे, तो गुलशन की तरह बाअदब जी जाना चाहिए।" माया का यह विचार उनके जीवन में भी साफ दिखाई देता है, क्योंकि उन्होंने संघर्ष और मेहनत से अपने जीवन को सफलता की ओर अग्रसर किया।
सरकार की योजनाओं का लाभ उठाना
माया जैसे व्यक्तियों की कहानियां दर्शाती हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर, समाज के गरीब और पिछड़े वर्ग भी आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से सशक्त बन सकते हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने माया जैसे लाखों लोगों को आत्मनिर्भर बनने और अपने सपनों को पूरा करने का अवसर प्रदान किया है। माया का जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि सच्ची लगन और मेहनत हो, तो किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।
समाज में नई पहचान
आज माया का परिवार खुशहाल है और वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और अपने परिवार को बेहतर जीवन देने में समर्थ हैं। उनकी मेहनत और आत्मविश्वास ने उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है और अब वे समाज में सम्मानित और प्रेरणादायक महिला के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उनके इस संघर्ष और सफलता की कहानी पूरे गांव के लिए प्रेरणा है और ग्रामीण महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता का एक आदर्श उदाहरण।
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