मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड के गणेश पूजन में प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति: न्यायपालिका की निष्पक्षता पर उठते सवाल
written by : ASHWINI BADGAIYA , Senior Advocate / Free Lance Journalist
Edited By : ADIL AZIZ
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड द्वारा गणेश चतुर्थी के अवसर पर अपने घर पर भगवान गणेश की पूजा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित करना एक सामान्य धार्मिक परंपरा जैसा प्रतीत हो सकता था, लेकिन भारतीय राजनीति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के संदर्भ में यह घटना एक बड़े विवाद का रूप ले चुकी है। इस घटना के बाद न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि सीजेआई और प्रधानमंत्री के इस मिलन को राजनीतिक और न्यायिक क्षेत्र में अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है।
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धार्मिक आयोजन या राजनीतिक लाभ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो अपनी राजनीति में धर्म का प्रभावी रूप से उपयोग करने के लिए जाने जाते हैं, ने इस अवसर का लाभ उठाने में देर नहीं की। महाराष्ट्रियन टोपी पहनकर मोदी का गणेश पूजन में शामिल होना और इसकी तस्वीरें सार्वजनिक होना कई सवाल खड़े कर रहा है। खासकर, जब महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस घटना को एक राजनीतिक चाल के रूप में देखा जा रहा है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड ने सद्भावना के तहत प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया था, लेकिन यह आमंत्रण उनके लिए व्यक्तिगत तौर पर एक बड़ी चुनौती बन गया है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक मूल्यों पर सवाल उठ रहे हैं, और यह घटना उनकी छवि को धूमिल कर सकती है, खासकर जब उनकी अध्यक्षता वाली पीठ में मोदी सरकार के कई अहम मामले लंबित हैं।
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विपक्ष की तीखी आलोचना
विपक्षी दलों ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। शिवसेना (उद्धव) ने इस मिलन को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए हानिकारक बताया है। शिवसेना ने अपने बयान में कहा है कि महाराष्ट्र सरकार का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री एक पक्ष हैं। ऐसे में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड का प्रधानमंत्री के साथ सार्वजनिक तौर पर मिलना न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। विपक्ष का यह भी मानना है कि अब हर फैसला, खासकर वे जो मोदी सरकार से जुड़े होंगे, संदिग्ध नजर से देखा जाएगा।
सीजेआई के सामने अग्नि परीक्षा
सीजेआई चंद्रचूड के लिए यह घटना उनके करियर की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है। जिस तरह से पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई की न्यायिक विश्वसनीयता पर सवाल उठे थे, अब वैसी ही स्थिति चंद्रचूड के सामने भी उत्पन्न हो गई है। चंद्रचूड, जिन्होंने अब तक न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित करने में सफलता पाई थी, अब खुद एक अग्नि परीक्षा का सामना कर रहे हैं।
यह स्थिति ठीक उसी तरह है जैसे रामायण में मां सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा था, जबकि गलती रावण की थी। इसी तरह, सीजेआई चंद्रचूड के सामने अब हर फैसला उनके लिए एक अग्नि परीक्षा साबित होगा, जहां उन्हें अपनी ईमानदार छवि बनाए रखने के साथ-साथ न्यायपालिका की निष्पक्षता को भी बरकरार रखना होगा।
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सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स का उल्लंघन?
1997 में सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने न्यायिक जीवन के मूल्यों की पुनर्स्थापना करते हुए न्यायाधीशों के पेशेवर और व्यक्तिगत आचरण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत तय किए थे। इसके अनुसार, न्यायाधीशों को ऐसे किसी भी कार्य से बचना चाहिए, जिससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठें। इस घटना के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या सीजेआई चंद्रचूड ने इन गाइडलाइन्स का उल्लंघन किया है?
न्यायिक और राजनीतिक क्षेत्र से प्रतिक्रियाएं
इस घटना के बाद न्यायिक और राजनीतिक क्षेत्र में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कई न्यायिक विशेषज्ञों और अधिवक्ताओं ने इस मिलन पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि यह घटना न्यायिक मूल्यों और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स के खिलाफ जाती है। एक स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए यह आवश्यक है कि उसके सदस्य किसी भी राजनीतिक प्रभाव या व्यक्तिगत संबंधों से दूर रहें, ताकि जनता का न्यायिक प्रणाली में विश्वास बना रहे।
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अधिवक्ता अश्वनी बडगैया, जो स्वतंत्र पत्रकार भी हैं, इस घटना पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का कोई भी कार्य, चाहे वह व्यक्तिगत हो या आधिकारिक, जिससे निष्पक्षता की धारणा कम होती हो, टाला जाना चाहिए।" इस संदर्भ में, सीजेआई चंद्रचूड और प्रधानमंत्री मोदी का यह मिलन निश्चित रूप से एक विवादास्पद घटना है, जिससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
भविष्य में क्या होगा?
अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा? सीजेआई डीवाई चंद्रचूड का हर फैसला अब आलोचनात्मक नजरों से देखा जाएगा, खासकर जब यह मोदी सरकार से जुड़े मामलों की बात हो। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठने लगे हैं, और सीजेआई के लिए यह चुनौती और भी बढ़ गई है।
वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने इस मौके का राजनीतिक लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। महाराष्ट्रियन टोपी पहनकर गणेश पूजन में शामिल होने से उन्होंने आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अपनी छवि को मजबूत करने का प्रयास किया है।
यह घटना एक साधारण धार्मिक आयोजन से कहीं अधिक बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड के बीच यह मिलन न्यायपालिका की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। जहां सत्तापक्ष इस घटना को सामान्य मानता है, वहीं विपक्ष और न्यायिक क्षेत्र इसे एक खतरनाक संकेत मान रहे हैं।
सीजेआई चंद्रचूड के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है। उन्हें अब अपने भविष्य के फैसलों में अत्यधिक सतर्क रहना होगा, ताकि न्यायपालिका की निष्पक्षता और उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर कोई आंच न आए।
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