आदिवासी ज़मीन घोटाले के विरोध में उबाल: आदिवासी संगठन लामबंद, कलेक्ट्रेट का घेराव कर सौंपा माँगपत्र
Written & Edited By : ADIL AZIZ
(जनहित की बात, पत्रकारिता के साथ)
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कटनी – प्रदेश में चर्चित आदिवासी ज़मीन घोटाले को लेकर आदिवासी समाज में आक्रोश तेज़ होता जा रहा है। इसी घोटाले के विरोध में विभिन्न आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधि बुधवार को भारी संख्या में कलेक्ट्रेट पहुँचे, जहाँ उन्होंने घोटाले के मुख्य आरोपित बताये जा रहे संजय पाठक के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी की और प्रशासन को एक विस्तृत माँगपत्र सौंपा।
आदिवासी संगठनों का आरोप है कि संजय पाठक ने अपने चार आदिवासी कर्मचारियों—नत्थू कोल, प्रहलाद कोल, राकेश सिंह गोंड़ और रघुराज सिंह गोंड़—को मोहरा बनाकर कटनी, जबलपुर, उमरिया, सिवनी और डिंडोरी जिले में भारी मात्रा में बेनामी संपत्ति खरीद कर आदिवासी हितों को नुकसान पहुँचाया है। संगठनों का कहना है कि यह अकेला आर्थिक घोटाला नहीं, बल्कि सामाजिक अधिकारों पर सीधा हमला है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी लिया संज्ञान
आदिवासी संगठनों ने बताया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, दिल्ली ने भी इस पूरे प्रकरण पर संज्ञान लिया है और पाँच जिलों के कलेक्टरों को नोटिस जारी किया है। आयोग ने प्रशासन से पूछा है कि आखिर कैसे आदिवासियों के खातों के माध्यम से करोड़ों रुपये का लेन-देन होते हुए भी इसकी जानकारी अधिकारियों को समय पर नहीं हुई।
संगठनों ने यह भी कहा कि पाँच माह पूर्व जिला स्तर पर दस्तावेज़ी शिकायत दी गई थी, लेकिन जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसी उदासीन रवैए के कारण आदिवासी समाज को सड़क पर उतरने पर मजबूर होना पड़ा।
आदिवासी कर्मचारियों के खातों की 25 वर्ष की लेन-देन जाँच की माँग
प्रदर्शन के मुख्य शिकायतकर्ता दिव्यांशु मिश्रा अंशु ने कहा कि चार माह पूर्व दर्ज कराई गई शिकायत पर पुलिस ने केवल उनके बयान लेकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
उन्होंने आरोप लगाया कि संजय पाठक की पारिवारिक कंपनियों ने इन गरीब आदिवासी कर्मचारियों के नाम पर फर्जी लेन-देन किए हैं। आरोप है कि इन कर्मचारियों के खातों में पिछले 25 वर्षों में करोड़ों रुपये का लेन-देन हुआ, जबकि ये सभी आदिवासी परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं।
मिश्रा का कहना है कि “जब तक सभी चार आदिवासियों के बैंक खातों की पूरी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती और जांच एजेंसियों को उपलब्ध नहीं कराई जाती, तब तक पूरे घोटाले की वास्तविकता सामने आना असंभव है।”
संगठन प्रतिनिधियों ने कहा कि पुलिस अधीक्षक द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी दबाव में आकर कार्यवाही को टालते रहे, जिससे संदेह और गहराता जा रहा है।
संजय पाठक पर एफआईआर दर्ज करने की माँग तेज़
प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन से तत्काल संजय पाठक पर एफआईआर दर्ज करने की माँग की है। उनका कहना है कि जब तक मुख्य आरोपी पर कानूनी कार्रवाई नहीं होती, तब तक इस घोटाले की निष्पक्ष जांच संभव नहीं।
आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी कि अगर जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन द्वारा दोषियों के खिलाफ तुरंत कठोर और निष्पक्ष कार्रवाई नहीं की गई, तो वे न्याय के लिए कोर्ट की शरण लेने को मजबूर होंगे। इसका पूरा दायित्व जिला प्रशासन पर होगा।
कलेक्ट्रेट परिसर में उग्र प्रदर्शन—सैकड़ों आदिवासियों की उपस्थिति
कलेक्ट्रेट परिसर में हुए इस विशाल विरोध प्रदर्शन में कई संगठनों, युवा समूहों और जनप्रतिनिधियों ने भाग लिया। मैदान में “संजय पाठक मुर्दाबाद” जैसे नारे लगातार गूंजते रहे, जिससे माहौल बेहद गर्म रहा।
प्रदर्शन में प्रमुख रूप से उपस्थित रहे—
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गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जिला अध्यक्ष मनोज धुर्वे
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सीपीएम के रामनारायण कुररिया
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युवा कांग्रेस जिला अध्यक्ष मोहम्मद इसराइल
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आदिवासी कांग्रेस जिला अध्यक्ष ओंकार सिंह
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कमल पांडेय, शुभम मिश्रा, अजय खटिक, शशांक गुप्ता, अजय गोंटिया
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जयस से विनोद मरावी
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गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन से पूरण सिंह, दरयाब सिंह, सत्येंद्र परते, अजय सिंह गौड़
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राघवेंद्र सिंह, छात्रपाल मरावी, सागर मरावी, शंभु सिंह गौड़, नीलेंद्र परस्ते
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गुलजार सिंह, अविराज सिंह, प्रदीप मरकाम, धीरेंद्र सिंह, मेवीलाल सिंह, विनोद सिंह
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फग्गू सिंह गोंटिया समेत सैकड़ों आदिवासी बड़ी संख्या में शामिल रहे।
संगठनों ने एक स्वर में कहा कि यह सिर्फ एक वित्तीय अनियमितता नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और अधिकारों पर हमला है, जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
आदिवासी समाज की आवाज़ को अनसुना नहीं किया जा सकता
घोटाले के आरोप गंभीर हैं, और इन्हें दरकिनार करना प्रशासन के लिए मुश्किल है। आदिवासी संगठनों का यह आक्रोश स्पष्ट संकेत है कि समाज अब अपनी जमीन, अधिकार और पहचान को बचाने के लिए निर्णायक संघर्ष करने को तैयार है।
जिला प्रशासन और पुलिस पर लगातार सवाल उठ रहे हैं, और यदि इन आरोपों की पारदर्शी जांच नहीं हुई, तो मामला निश्चित रूप से अदालत तक जाएगा।










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