“वंदे मातरम् के 150 साल: राष्ट्रगीत की ऐतिहासिक यात्रा और आज का महत्व”
Written & Edited By : ADIL AZIZ
(जनहित की बात, पत्रकारिता के साथ) PUBLIC SAB JANTI HAI
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# वंदे मातरम् की रचना और उद्भव कथा
### वंदे मातरम् मूल गीत
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्, वंदे मातरम्॥
कोटि कोटि कण्ठ कल कल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम्॥
वंदे मातरम्!
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि ह्रदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम्॥
वंदे मातरम्! [1][3][4]
***
### हिंदी अनुवाद व भावार्थ
- हे माँ, मैं तुझे वंदन करता हूँ!
पानी से भरी, फलों से लदी, मंद-मंद पवन से शीतल,
हरियाली से भरी मेरी माँ! मैं तुझे वंदन करता हूँ।
- **रात की दूधिया चाँदनी से पुलकित,
खिले फूलों और हरे वृक्षों से सुसज्जित,
हँसती-मुस्कराती, मीठी बोली वाली,
सुख देने वाली, वरदान देने वाली माँ!
मैं तुझे वंदन करता हूँ।**
- **करोड़ों कंठों की कल-कल ध्वनि से गूंजती,
करोड़ों भुजाओं से निभाई जाने वाली,
कौन कहता है, माँ, तुम निर्बल हो?
बलशाली, तारिणी, शत्रु संघारिणी माँ!
मैं तुझे नमन करता हूँ।**
- **तुम ही विद्या हो, तुम ही धर्म हो,
हृदय में तुम, आत्मा में तुम,
शरीर में प्राण स्वरूप तुम,
बाहु में शक्ति स्वरूप,
हृदय में भक्ति स्वरूप,
हर मंदिर में, तुम्हारी प्रतिमा बसाई गई है, हे माँ!
मैं तुझे वंदन करता हूँ।**
#### अर्थ
“वंदे मातरम्” गीत मातृभूमि भारत को देवी रूप में वंदन करता है। यहाँ भारत की प्राकृतिक सुंदरता, उसकी संपन्नता तथा उसकी शक्ति, सहिष्णुता और सांस्कृतिक समृद्धि की महिमा का बखान किया गया है। यह गीत देशभक्ति, निस्वार्थ सेवा, और मातृभूमि के प्रति सम्मान व प्रेम की भावना को जाग्रत करता है[
परिचय : 150 वर्ष बाद भी गूंजता भारत माता का स्वर
भारत का राष्ट्रगीत वंदे मातरम्—एक ऐसा अमर गीत है जिसने अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध भारतीयों के सीने में आज़ादी की ज्वाला प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2025 में इस गीत के 150 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। यह केवल गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का दार्शनिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक प्रतीक है, जिसने पीढ़ियों को एकता, राष्ट्रभक्ति और बलिदान की प्रेरणा दी।
“वंदे मातरम् के 150 वर्ष: जानिए कैसे यह राष्ट्रगीत आज़ादी के संघर्ष की आवाज़ बना, कैसे बना राष्ट्रीय प्रतीक, और आज के भारत में इसका सांस्कृतिक महत्व। पढ़ें पूरा विश्लेषण आदिल अज़ीज़ द्वारा।”
वंदे मातरम् की रचना : एक राष्ट्रचेतना का जन्म
वर्ष 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाल के शांत ग्रामीण वातावरण में इस गीत की रचना की।
उस दौर में भारत ब्रिटिश शासन की कठोर नीतियों के बोझ तले दबा था। भारतीय समाज निराशा और असहायता महसूस कर रहा था। ऐसे समय में बंकिम चंद्र ने "वंदे मातरम्" रचकर भारतीयों के आत्मसम्मान को पुनर्जीवित किया।
1882 में जब उन्होंने इसे अपने प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया, तब यह गीत राजनीतिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना का केंद्र बन गया।
यह गीत संन्यासियों द्वारा ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक था — जो पूरे भारत में उत्पीड़न के खिलाफ जनजागृति फैलाने लगा।
गीत की भाव-व्याख्या : भारत माता की आध्यात्मिक छवि
“सुजलाम्, सुफलाम्, मलयजशीतलाम्…”
इन पंक्तियों में भारत की पवित्र धरती, इसकी नदियाँ, फसलें, पवन और प्रकृति का अनुपम चित्रण है।
यह गीत बताता है कि भारत माता केवल भूमि नहीं, बल्कि एक जीवंत चेतना है —
जो विद्या, शक्ति, भक्ति और संपन्नता का स्रोत है।
वंदे मातरम् की भावनाएँ किसी एक धर्म से नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीयता से जुड़ी हैं। यह हमारी सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्रीय एकता का संकेत है।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वंदे मातरम् की भूमिका
1905 में जब बंगाल विभाजन घोषित हुआ, तब पूरे देश में "वंदे मातरम्" एक युद्धघोष बनकर फैल गया।
जिस तरह "साइमन गो बैक" का नारा अंग्रेजों के विरुद्ध इस्तेमाल हुआ, उसी तरह “वंदे मातरम्” स्वतंत्रता के आंदोलन का चिह्न बन गया।
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स्कूलों, सभाओं, जुलूसों में यह गीत गूंजने लगा
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क्रांतिकारियों ने इसे हृदय की ऊर्जा बना लिया
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भगत सिंह, आज़ाद, सुभाष बोस सहित अनगिनत वीर इससे प्रेरित हुए
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कांग्रेस के अधिवेशनों में इसे नियमित रूप से गाया जाता था
अंग्रेज इस गीत के प्रभाव से इतने भयभीत थे कि कई जगह इसके सार्वजनिक गायन पर रोक लगा दी गई।
लेकिन इसके स्वर को दबाया नहीं जा सका—यह भारत के स्वाभिमान का स्वर बन चुका था।
धार्मिक विवाद और समाधान : राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
इस गीत के कुछ छंदों में भारत माता को देवी के रूप में चित्रित किया गया है।
कई मुस्लिम नेताओं ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि उनके धर्म में देवी-देवता की पूजा का स्थान नहीं है।
1937 के कांग्रेस अधिवेशन में गांधी, नेहरू, मौलाना आज़ाद और नेताजी सुभाष बोस ने इस विषय पर गहन विचार किया।
अंततः निर्णय हुआ कि—
✅ केवल पहले दो छंद राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार किए जाएँ
✅ ये छंद धार्मिक नहीं, बल्कि मातृभूमि की स्तुति और राष्ट्रभक्ति से संबंधित हैं
यही कारण है कि भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् और राष्ट्रीय गान जन गण मन दोनों आपसी सम्मान के साथ अस्तित्व में हैं।
आधुनिक भारत में वंदे मातरम् का महत्व
150 वर्ष बाद भी वंदे मातरम् भारतीय समाज की धड़कन है।
यह—
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स्कूलों की प्रार्थना में
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सरकारी कार्यक्रमों में
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सांस्कृतिक आयोजनों में
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फिल्मों और संगीत में
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सोशल मीडिया के देशभक्ति अभियानों में
आज भी उसी उत्साह से गाया और सुना जाता है।
हालाँकि हालिया वर्षों में इसके गायन को "अनिवार्य" करने को लेकर राजनीतिक बहसें भी सामने आई हैं।
कुछ लोग इसे राष्ट्रीय गौरव का प्रश्न मानते हैं, जबकि कुछ धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हैं।
लेकिन यह तथ्य अटल है कि वंदे मातरम् भारतीय एकता का प्रतीक है —
जो जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र से परे सभी को जोड़ने की क्षमता रखता है।
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सांस्कृतिक विरासत में वंदे मातरम् की अमिट छाप
भारतीय कला, साहित्य और सिनेमा में वंदे मातरम् की उपस्थिति गहरी है—
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कई प्रेरक फिल्मों में इसकी धुन सुनकर दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं
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मंच नाटकों, कविताओं और पेंटिंग्स में यह स्वतंत्रता, त्याग और गौरव का प्रतीक है
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आधुनिक रिमिक्स और ऑर्केस्ट्रा संस्करणों के माध्यम से युवाओं में फिर से लोकप्रिय हो रहा है
150 वर्ष बाद भी यह गीत हमारे दिलों में वही भावनात्मक उर्जा जगाता है जो स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में जगाता था।
निष्कर्ष : राष्ट्रभक्ति की धड़कन है वंदे मातरम्
“वंदे मातरम्” एक गीत से कहीं अधिक है—
यह भारत की आत्मा है, जो हमें हमारी जड़ों, संस्कृति, विविधता और सामूहिक पहचान की याद दिलाती है।
जब कोई भारतीय “वंदे मातरम्” कहता है—
तो वह केवल नारा नहीं बोलता, बल्कि एक प्रतिज्ञा लेता है—
✅ अपनी मातृभूमि से प्रेम की
✅ उसकी गरिमा बनाए रखने की
✅ उसकी एकता, संस्कृति और स्वतंत्रता की रक्षा करने की
150 वर्षों का यह ऐतिहासिक पड़ाव इस गीत की अनंत शक्ति और भारतीयों के अटूट प्रेम का प्रमाण है।
“Vande Mataram 150 Years | राष्ट्रगीत का इतिहास, विवाद और सच्चाई
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