💔 दिल दहला देने वाला वीडियो: इंसानियत हुई शर्मसार, व्यापारी बना तमाशबीन जबकि कर्मचारी तड़पता रहा
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Written & Edited By : आदिल अज़ीज़ (जनहित की बात, पत्रकारिता के साथ)
Email : publicnewsviews1@gmail.com
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आगर मालवा के सुसनेर से निकला दर्दनाक वीडियो
मध्यप्रदेश के आगर मालवा ज़िले की तहसील सुसनेर से एक ऐसा सीसीटीवी वीडियो सामने आया है जिसने हर संवेदनशील इंसान को झकझोर कर रख दिया है।
वीडियो में एक किराना दुकान के अंदर काम करने वाला कर्मचारी रफीक अचानक ज़मीन पर गिरकर तड़पने लगता है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि उसके पास ही बैठा दुकानदार कुर्सी पर आराम से मोबाइल चलाता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
यह पूरा दृश्य लगभग पाँच मिनट तक कैमरे में कैद रहा — एक इंसान तड़प-तड़पकर दम तोड़ता रहा, और दूसरा इंसान बस तमाशा देखता रहा।
यह घटना इंसानियत के मुंह पर एक करारा तमाचा है।
📹 सीसीटीवी फुटेज में दर्ज हुई दर्दनाक लापरवाही
सीसीटीवी फुटेज में साफ़ देखा जा सकता है कि दुकान के एक कोने में रफीक अचानक गिर जाता है।
उसके हाथ-पैर झटके खाने लगते हैं, और वह मदद के लिए तड़पता है।
पास बैठा व्यापारी अपने फोन में मशगूल रहता है, एक नज़र भी उसकी ओर नहीं करता।
करीब पाँच मिनट बाद दूसरे कर्मचारी आते हैं, जो उसे उठाने की कोशिश करते हैं।
फिर किसी तरह परिजनों को सूचना दी जाती है और रफीक को अस्पताल ले जाया जाता है।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है — डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
🚨 न पुलिस को सूचना, न स्वास्थ्य विभाग तक मामला
इस पूरे मामले की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि ना तो व्यापारी ने पुलिस को खबर दी, और ना ही स्वास्थ्य विभाग को सूचना दी गई।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, व्यापारी ने पहले तो घटना को छिपाने की कोशिश की और सीसीटीवी फुटेज भी बाहर न आने देने का प्रयास किया।
लेकिन किसी ने फुटेज सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया, जो अब तेज़ी से वायरल हो रहा है।
यह वीडियो सिर्फ़ एक दर्दनाक हादसा नहीं, बल्कि समाज की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को दिखाता है।
😢 एक मजदूर की मौत, कई सवाल खड़े करती है यह चुप्पी
रफीक रोज़ की तरह दुकान पर काम करने आया था।
वह अपने परिवार के लिए मेहनत कर रहा था — लेकिन जब उसे अचानक हार्ट अटैक आया, तब जिस व्यक्ति के लिए वह काम करता था, वही उसे बचाने की कोशिश तक नहीं करता।
क्या यह सिर्फ़ एक घटना है?
या यह हमारे समाज की उस हालत का प्रतीक है जहाँ इंसानियत और मानवीय संवेदना मर चुकी है?
🧠 क्या हमारी संवेदनाएँ सचमुच खत्म हो गई हैं?
इस घटना ने सोशल मीडिया पर गहरी बहस छेड़ दी है।
लोग पूछ रहे हैं —
“अगर हम किसी को मरते देख भी हाथ नहीं बढ़ा सकते, तो क्या हम अब भी इंसान हैं?”
रफीक के तड़पते शरीर के सामने व्यापारी की निर्लिप्तता हमारे समाज के मौन का आईना है।
जिस समाज में “सेल्फी” लेने की फुर्सत है लेकिन मदद का हाथ नहीं उठता, वह समाज नैतिक रूप से बीमार है।
📱 सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो, जनता में आक्रोश
जैसे ही यह वीडियो सोशल मीडिया पर आया, लोगों में आक्रोश फैल गया।
लोग व्यापारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
कई लोगों ने टिप्पणी की —
“यह सिर्फ़ एक व्यक्ति की मौत नहीं, इंसानियत की हार है।”
“ऐसे लोगों पर आपराधिक लापरवाही का मुकदमा चलना चाहिए।”
कुछ लोगों ने यह भी लिखा कि यदि उस समय व्यापारी थोड़ी भी मानवीयता दिखाता, तो शायद रफीक की जान बच सकती थी।
🏥 मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है
स्थानीय डॉक्टरों का कहना है कि यदि हार्ट अटैक आने के तुरंत बाद सीपीआर या बेसिक फर्स्ट-एड दिया जाए, तो मरीज की जान बचाई जा सकती है।
लेकिन यहाँ तो सहायता की जगह उदासीनता और असंवेदनशीलता देखने को मिली।
डॉक्टरों ने कहा कि—
“समाज में हार्ट अटैक जैसी आपात स्थितियों में प्राथमिक उपचार की जानकारी होना बेहद जरूरी है।
अगर तुरंत मदद मिले, तो 60% मामलों में जीवन बचाया जा सकता है।”
🕯️ “इंसानियत शर्मसार” — लोगों ने कहा यह सिर्फ़ एक वीडियो नहीं, आईना है
वीडियो वायरल होने के बाद लोगों ने इसे “इंसानियत के पतन का प्रतीक” कहा।
हर देखने वाला व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर है कि —
“अगर मेरे सामने ऐसा हुआ, तो क्या मैं भी वही करूँगा?”
यह वीडियो हमारे दिलों में झांकने का मौका देता है — कहीं हम भी उदासीनता और स्वार्थ की खाई में तो नहीं गिर चुके हैं?
🧭 समाज और प्रशासन के लिए सबक
यह घटना प्रशासन के लिए भी चेतावनी है कि आपात स्थिति में मदद करने की संस्कृति को प्रोत्साहित किया जाए।
सड़क दुर्घटनाओं या अचानक बीमारी के मामलों में आम नागरिकों को सिखाया जाए कि कैसे तुरंत सहायता करें।
साथ ही ऐसे मामलों में लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई जरूरी है।
यदि हर व्यक्ति थोड़ी भी मानवीय संवेदना दिखाए, तो कई जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं।
⚡ एक सवाल जो हर दिल में गूंज रहा है
सुसनेर की यह घटना सिर्फ़ रफीक की नहीं, हम सबकी हार है।
यह सवाल छोड़ती है —
“क्या हम इतने आत्मकेंद्रित हो गए हैं कि अब किसी की जान जाते हुए भी हमें फर्क नहीं पड़ता?”
हमारे समाज को अब संवेदना और मानवता की पुनर्स्थापना की जरूरत है।
वरना एक दिन यह उदासीनता हमें उस बिंदु पर ले जाएगी, जहाँ कोई किसी के लिए आवाज़ तक नहीं उठाएगा।
Written & Edited By : आदिल अज़ीज़
(जनहित की बात, पत्रकारिता के साथ)
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